Thursday 22 September 2016

भारत में कराधान का विकास- उत्पाद शुल्क से सेनवैट और फिर जीएसटी

भारत में राजाओं के समय से ही वस्तुओं के उत्पादन व बिक्री पर कर प्रचलित था। अकबर महान ने 1580 के आसपास कुछ समय के लिए भारत में कराधान संरचना में परिवर्तन किया था। यह मुख्य रूप से कृषि पर था हालांकि भ्रष्टाचार, कर की मात्रा व चोरी उस समय की समस्याएं थीं।

लगभग 6 सदियों बाद हमारी वही समस्याएं हैं। साथ ही कृषि के अतिरिक्त हमारा एक अधिक विविध उद्योग है जिसमें वस्तुएं व सेवाएं हैं। कराधान को चोरी के नवीन तरीके व सरकारी अधिकारियों द्वारा  नागरिकों पर किए गए अत्याचारों पर विचार करना होगा।

तो पूर्व में हमने उत्पाद शुल्क से प्रारंभ किया- जो काफी हद तक वस्तुओं के उत्पादन पर लगाया हुआ कर है। तो समीकरण सरल थाः

निर्माता 1: उत्पादित की गई वस्तुओं की कीमतः 100 रूपये
कर (उदाहरण के लिए 10 प्रतिशत) और इसलिए बिक्री मूल्यः 110 रूपये/-

तो यदि कोई यह उत्पाद खरीदता है, कच्चे माल में से एक की तरह इसका उपयोग करता है व किसी अन्य व्यक्ति को बेच देता है तो कराधान निम्न. प्रकार से होगाः

निर्माता 2: खरीदी गई वस्तुओं की कीमतः 110 रूपये
उत्पादन की अतिरिक्त कीमतः 90 रूपये, इसलिए उत्पादित वस्तुओं की कीमतः 200 रूपये
कर (10 प्रतिशत): 20 रूपये जो बिक्री मूल्य को कुल मिलाकर कर देता हैः 220 रूपये/-

तो ऊपर उल्लेखित सौदे में सरकार को प्राप्त हुआ कुल कर 30 रूपये है (10 रूपये निर्माता 1 द्वारा व 20 रूपये निर्माता 2 द्वारा) न्यायसंगत 20 रूपये की बजाय (200 रूपये पर 10 प्रतिशत)। इसे ‘‘दुगना कराधान’’ कहा जाता है। इस समस्या का समाधान करने के लिए केंद्रीय मूल्य वर्धित कर- सेनवैट उत्पन्न हुआ था। यह पूरी राशि पर नहीं बल्कि मूल्य संवर्धन पर कर है। 

तो ऊपर उल्लेखित लेन देन की प्रक्रिया में निर्माता 2 को वस्तुओं की खरीदी पर उसके द्वारा भुगतान किए गए कर का क्रेडिट प्राप्त होगा इसलिए वह बिक्री करने के पहले मूल्य वर्धन पर कर के रूप में केवल 10/- रूपये का भुगतान करेगा।

सेवाओं के साथ भी यही स्थिति है। तो वर्तमान में सेवा कर यह संरचना प्रदान करता है। वस्तु एवं सेवा कर - जीएसटी का लक्ष्य एक समय में राज्य स्तर अथवा केंद्रीय स्तर पर एक कर के ऊपर दूसरे कर का क्रेडिट प्रदान करना है। तो यदि आपने सेवा कर का भुगतान किया है व आपके उत्पाद की बिक्री पर आपको उत्पाद शुल्क प्राप्त हो- तब भी आपको चुकाये गए सेवा शुल्क का क्रेडिट प्राप्त होगा और आपको केवल शेष राशि का भुगतान करना होगा।

इस प्रकार जीएसटी सभी करों को सम्मिलित करने वाला है व करदाताओं को केवल कर के सही भाग जो सरकार को दिया जाना बकाया है, का भुगतान करने में सहायता करने वाला है। 

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