Friday 23 September 2016

उपकर क्या है और यह कर से किस तरह अलग है

सरकार के कई प्रकार के राजस्व होते हैं जैसे कर, शुल्क, उपकर, दंड, जुर्माना आदि। प्रत्येक राजस्व स्त्रोत का उपयोग नियम व विनियमन के अनुसार करना होता है जिसके तहत यह एकत्रित किया जाता है। भारत में प्रत्यक्ष कर कम हो रहे हैं-पहले हमारे यहाँ धन कर एवं उपहार कर होते थे। अब हमारे पास केवल आयकर है। शुल्क ऐसा कुछ है जो एक विक्रेता करदाता से एकत्रित करता है और फिर उसका भुगतान सरकार को करता है। उत्पाद शुल्क व सीमा शुल्क भारत में लगाए गए अप्रत्यक्ष कर के उदाहरण है।


यदि आप एक कानून तोड़ते हैं तो आप जुर्माने व दंड के अधीन हैं। ये उस करदाता को दंडित करने के उद्देश्य से लगाए जाते हैं ताकि वह कानून का अनुपालन करे।

सरकार द्वारा एकत्रित सभी कर एवं शुल्क को राज्य के साथ उस अनुपात में बांटा जाना होता है जिसका निर्णय पहले हो चुका है। कर का बड़ा हिस्सा उस राज्य को जाता है जहाँ से उसे एकत्रित किया गया था। इन करों को हर वर्ष वित्त विधेयक का एक भाग होना आवश्यक है एवं हर वर्ष संसद से स्वीकृति प्राप्त करना आवश्यक है।

उपकर कर, शुल्क, जुर्माना एवं दंड से पूर्णतः भिन्न है। उपकर कर पर एक कर है। तो वस्तुतः यह एक अलग अधिनियम द्वारा नहीं लगाया गया है ना ही इसे एकत्रित करने के लिए अलग प्राधिकरण हैं। तो आयकर पर 1 प्रतिशत कर का अर्थ होगा कि आप 100 रूपये कमा रहे हैं और आयकर के रूप में 30 रूपये का भुगतान कर रहे हैं, तो 1 प्रतिशत उपकर का अर्थ होगा आपको  सरकार को 30.30 रूपये का भुगतान करना होगा। जहां यह नाममात्र राशि प्रतीत होती है एवं बहस किए जाने योग्य नहीं लगती, भारत सरकार द्वारा एकत्रित किया गया उपकर 2000 से अबतक 4,00,000 करोड़ पार कर चुका है।

विभिन्न प्रकार के उपकर हैं-
  1. विश्वव्यापी सेवा दायित्व निधि
  2. अनुसंधान एवं विकास उपकर
  3. प्राथमिक शिक्षा उपकर
  4. माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक शिक्षा उपकर
  5. राष्ट्रीय स्वच्छ उर्जा उपकर
  6. केंद्रीय सड़क निधि
  7. फीचर फिल्मों पर उपकर
  8. चाय पर उपकर
  9. निर्माण कामगार कल्याण उपकर
कराधान को सरल बनाने के बहाने केंद्र में सरकारें लगातार विभिन्न करों को समाप्त कर रहीं हैं व अधिक उपकर लागू कर रही हैं। कर की तुलना में उपकर लागू करने के अनेक लाभ हैं। सबसे पहला यह कि उपकर भी वे प्राधिकरण ही एकत्र करते हैं जो कर एकत्रित करते हैं। तो कोई अलग रिटर्न दाखिल करना, मूल्यांकन, अपील एवं मुकदमेबाजी नहीं है। दूसरी बात यह की सरकार को उपकर की आय के लिए राज्यों के साथ राजस्व बांटने की आवश्यकता नहीं है। कर की तरह उपकर का भाग राज्य सरकार को नहीं जाता है। तीसरी बात की उपकर उसी उद्देश्य के लिए इस्तमाल किया जा सकता है जिसके लिए उसे एकत्रित किया गया था, हालांकि सरकार को वर्ष दर वर्ष इसका उपयोग करने की आवश्यकता नहीं है तो इससे जवाबदेही सीमित हो जाती है। अंत में एक बार लगाए गए उपकर को कर की तरह हर वर्ष संसद की मंजूरी लेने की आवश्यकता नहीं है।

दुर्भाग्य से उपकर कर का आधार नहीं बढ़ाता या कराधान का एक भिन्न दृष्टिकोण उत्पन्न नहीं करता। भारत को आज कर आधार बढ़ाने की आवश्यकता है। हालांकि उपकर सर्वथा भिन्न कार्य करता है और यह उन लोगों से कर वसूलता है जो पूर्णतः इमानदार होते हैं और इस प्रकार बेईमान लोगों को प्रोत्साहित करता है कि वे बदलें नहीं।

उपकर के साथ सरकार क्या कर रही है?

पिछले लेख में हमने सरकार के राजस्व के विभिन्न प्रकार देखे और किस प्रकार उपकर उन सभी से अलग है। हालांकि उपकर का उपयोग उसे एकत्रित किये गए उद्देश्य के लिए ही करना होता है। कर एवं उपकर के मध्य यह बड़ा अंतर है। विभिन्न केंद्र सरकारें उपकर एकत्रित करने की इस आधारभूत शर्त का पालन करने में विफल रहीं हैं। 

सरकार द्वारा उच्च शिक्षा, सड़क विकास एवं श्रमिकों के कल्याण जैसे विविध प्रयोजनों के लिए एकत्रित किया गया 1.4 लाख करोड़ का कोष अप्रयुक्त पड़ा हुआ है, यह लेखा नियंता के विश्लेषण एवं सरकार के वित्त पर महालेखा परिक्षक की एक रिपोर्ट एवं लोकसभा में मंत्रियों के उत्तरों से पता चलता है।

सरकार ने कुछ उपकरों को जिसके लिए उन्हे एकत्रित किया जा रहा था उनसे भिन्न गतिविधियों की तरफ मोड़ दिया है। प्राथमिक शिक्षा उपकर को ‘‘मध्यान्न भोजन योजना’’ में बदला जाना उतना ही दोहरा हो सकता है क्योंकि इस योजना ने विद्यालय में उपस्थिति सुधारी है हालांकि यह शिक्षा योजना की बजाए पोषण योजना अधिक है। 2004-05 से 2014-15 के प्राथमिक शिक्षा उपकर का मूल्य 1,54,818 करोड़ था। इनमें से 13,298 करोड़ रूपये निष्क्रिय पड़े हैं। अन्य उदाहरण डीज़ल उपकर का है जिसका उद्देश्य सड़कों का निर्माण करने का था, उसका उपयोग रेलवे विस्तार निधि के लिए किया जा रहा है।

कैग की रिपोर्ट में पता चला है कि माध्यमिक और उच्च शिक्षा उपकर (एसएचइसी) के तहत 2006-15 के दौरान एकत्रित किये गये 64,288 करोड़ रूपये अप्रयुक्त पड़े हुए हैं। सभी करदाताओं पर एसएचईसी 1 प्रतिशत की दर पर लागू है। 2015/16 के लिए योजना परिव्यय कहते हैं ‘‘शिक्षा (प्राथमिक) उपकर से प्राप्त 27,575 करोड़ की अनुमानित राशि प्रधानमंत्री शिक्षा कोष में जमा हो जाएगी’’ हालांकि एसएचईसी के लिए इसी तरह के प्रावधान का उल्लेख नहीं किया गया है।

ऐसे समय में जब धनापूर्ति एक आवश्यकता है, इस प्रकार पड़ी अप्रयुक्त निधियों का अर्थव्यवस्था पर बड़ा हानिकारक प्रभाव पड़ेगा।

इसके अतिरिक्त, अप्रैल 2015 में श्रम और रोजगार मंत्री बंडारू दत्तात्रेय द्वारा संसद में दिये गये जवाब से पता चलता है कि ‘‘राज्य सरकारों से प्राप्त हुई जानकारी के अनुसार, दिसंबर 31, 2014 तक एकत्रित किए गये 16,214.51 करोड़ में से 2,859.86 करोड़, जो 17.63 प्रतिशत है, कुल उपकर रूपये की राशि से श्रमिकों के कल्याण के लिए खर्च किया गया है। अन्य शब्दों में, लगभग 13,300 करोड़ रूपये अप्रयुक्त पड़े हुए हैं।

राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा कोष, अनुसंधान एवं विकास उपकर कोष, केंद्रीय सड़क निधि, आयकर कल्याण निधि, सीमा शुल्क और केंद्रीय उत्पाद शुल्क कल्याण कोष और कई निष्क्रिय कोषों में 14,500 करोड़ रूपये अप्रयुक्त पड़े हैं।

सारा अप्रयुक्त पैसा भारत सरकार के ‘‘समेकित खाते’’ के लिये चला जाता है और अगर वह एक नामित निधि में जमा नहीं किया गया है तो उसे जिसके लिए उसे एकत्रित किया गया है उसके अलावा अन्य प्रयोजनों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। तो हम सुरक्षित रूप से मान सकते हैं कि निष्क्रिय धन का दुरूपयोग हो रहा है।

अब एक और उपकर-स्वच्छ भारत उपकर

हमने पिछले लेख में देखा कि सरकार द्वारा विभिन्न प्रकार के उपकर लगाए जाते हैं। ये कोष या तो अप्रयुक्त हैं या मुख्य उद्देश्य से हट गए हैं। इन अप्रयुक्त निधियों के बावजूद सरकार ने दिखा दिया है कि यह उपकर को लेकर उत्सुक है। पहले ही एक स्वच्छ भारत उपकर लगाया जा चुका है और विमानन उद्योग में क्षेत्रीय संपर्क उपकर कर का प्रस्ताव है और चीनी उत्पादन पर उपकर बढ़ता जा रहा है। तम्बाकू और शराब उत्पादों पर एक सवास्थ्य देखभाल कर लगरने का भी प्रस्ताव है।

तो स्वच्छ भारत उपकर का लक्ष्य क्या है? हम सभी जानते हैं कि हमारा राष्ट्र साफ नहीं है और इसे साफ करने के लिए हमें पैसे, नागरिकों की आदतें, नागरिकों के व्यवहार में परिवर्तन और एक चमत्कार की आवश्यकता है। सरकार किस प्रकार एक और उपकर लगा कर उस लक्ष्य को प्राप्त करने की योजना बना रही है? उपकर लगाए जाने व उसे संग्रहित करने का सरकार का ट्रैक रिकार्ड बहुत अच्छा है-13 वर्ष की अवधि में 4,00,000 करोड़ रूपये अच्छा प्रदर्शन है। हालांकि उद्देश्य की दिशा में इसका प्रयोग लगभग ना समझाए जाने योग्य है। विभिन्न उपकर उनके उद्देश्य को पूरा नहीं कर पा रहे हैं और तो और अधिक निष्क्रियता से इस्तेमाल किए जा रहे हैं। उदाहरण के लिए वैश्विक सेवा दायित्व निधि का उद्देश्य सार्वजनिक संस्थान द्वारा ग्रामीण संयोजकता के लिए उपयोग किया जाना था। 13 वर्ष में 66,117 करोड़ रूपये के संग्रह के साथ आप पूरे भारत के संयोजित होने की आशा करेंगे। भारत वास्तव में संयोजित तो है परंतु राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों की वजह से नहीं बल्कि निजी कंपनियों के नेटवर्क के कारण, जबकि इसका आधे से अधिक कोष अप्रयुक्त पड़ा हुआ है।

एक उपकर व विभिन्न मंत्रालयों व विभागों के लिए मंज़ूर सामान्य फंडों के बीच अंतर यह है कि उपकर को वार्षिक रूप से संसद द्वारा पारित किए जाने की आवश्यकता नहीं है यदि वह उसी उद्देश्य के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है जिसके लिए इसे एकत्रित किया गया था। ऐसी कुछ स्थितियां हैं जहां सरकार को निर्बाध धनापूर्ति की आवश्यकता होती है, जहां प्रतिबद्धता लंबे समय की रहती है, और इसलिए वह उपकर लगाने का अधिकार देता है। अन्यथा, निधि के उपयोग के लिए प्रत्येक बार मतदान किया जाना होगा, जो बोझिल है। धन का सही तरह से निर्धारित किया जाना बहुत आवश्यक है जो नहीं किया जा रहा है।

साथ ही, एक नए उपकर को लगाए जाने से पहले, सरकार को एक योजना दिखानी चाहिए कि वह किस प्रकार से कोष का उपयोग करने वाली है। सरकार को जवाबदेह होना होगा ताकि हम पता कर सकें की हमसे एकत्रित किये गये पैसों का उपयोग सही प्रकार से किया जा रहा है।

इतिहास गवाह है कि एकत्रित किये गये उपकर का उपयोग तब तक नहीं किया जाएगा जब तक वह एक अलग कोष में जमा नहीं किया गया है। इसके अलवा ‘‘स्वच्छ भारत’’ का उत्तरदायित्व हर नागरिक पर है, एक और उपकर किस प्रकार सफाई व स्वच्छता की संस्कृति को आत्मसात कर सकता है।

मुझे लगता है कि ‘‘स्वच्छ भारत’’ केवल एक वस्तु को साफ करेगाः बाज़ार में जो भी थोड़ी बहुत संपत्ति है उसे। 

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