Wednesday 28 September 2016

क्या आयकर भारत की बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित करने में सहायता कर सकता है

भारत विश्व की जनसंख्या का लगभग 1/3 भाग है। और यह अनुमानित है कि 2022 तक भारत चीन को पीछे छोड़ कर विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला राष्ट्र बन जाएगा। दुर्भाग्य से यह राष्ट्र जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए बहुत कम कार्य कर रहा है। क्या आयकर भारत की बढ़ती जनसंख्या को कम करने के साथ ही कर दायरे में वृद्धि कर सकता है? हम संयुक्त राज्य का व भारत में आधार योजना के कार्यान्वन का उदाहरण लेते हैं।

पहली बात तो यह कि संयुक्त राज्य में आपके आश्रितों की संख्या के लिए आपको आयकर में छूट मिलती है। तो यदि आपकी कोई संतान नहीं है व सहारा देने के लिए सेवानिवृत्त माता-पिता नहीं है तो आपको संपूर्ण कर का भुगतान करना होगा। हालांकि यदि आपकी दो संतान हैं व सहारा देने के लिए बगैर किसी आय के स्त्रोत के दो अभिभावक हैं तो आपको प्रत्येक आश्रित के लिए एक निश्चित सीमा तक छूट प्राप्त होती है। यह कराधान में कुछ निष्पक्षता लाता है और बिल्कुल समान आय होने पर भी, एक अविवाहित जिसके व्यय कम हैं वह एक परिवार वाले व्यक्ति से अधिक कर का भुगतान करता है।

लोग कर लाभ प्राप्त करने के लिए उनकी संतानों की वास्तविक संख्या से अधिक संतान होने का दावा कर व्यवस्था को धोखा देने का प्रयास करते थे। हालांकि 1987 में संयुक्त राज्य की सरकार ने लागू किया कि कर विवरणी में नामित किये गए प्रत्येक आश्रित की सामाजिक सुरक्षा संख्या का भी उल्लेख किया जाना होगा। यह हमारे भारत में आधार संख्या के समान है। यह नियम लागू होते ही संयुक्त राज्य से लगभग 7 मिलियन बच्चे गायब हो गए। वे मूलतः कर से बचने के लिए नकली दावे थे।

भारत भी इसी तरह का कानून लागू कर सकता है। भारत भी एक निर्भरता भत्ता दे सकता है जिसमें भारत का कोई भी परिवार वाला व्यक्ति आधार संख्या का उल्लेख कर उसके आश्रितों की कुल संख्या पर कर में छूट प्राप्त कर सकता है। संख्या की जाँच की जा सकती है व एक संख्या का उपयोग दो अभिभावकों द्वारा नहीं किया जा सकता है, जो सॉफ्टवेयर द्वारा लागू किया जा सकता है।

इसके अलावा ऐसे नियम बनाए जा सकते हैं जो केवल दो (अथवा 3) संतान तक ही कर भत्ते की अनुमति देगें। इस प्रकार यह अभिभावकों को अधिक संतान पैदा करने के लिए निरूत्साहित करेगा। यहाँ तक की यह युवाओं द्वारा वृद्ध माता-पिता की सेवा करने वाली भारतीय परिवार व्यवस्था को भी बनाए रखेगा।

आयकर विभाग यह भी पता लगा सकता है कि क्या एक ही समय पर उन्हीं अभिभावकों को एक से अधिक करदाता द्वारा नामित किया गया है। तो एक आधार संख्या एक ही कर विवरणी के साथ संबंधित है।

ऐसे परिवर्तनों का निश्चित रूप से कोई विरोध नहीं होगा और मतदाताओं द्वारा एक स्वागत योग्य पहल के रूप में लिया जाएगा क्योंकि यह उन लोगों को कर लाभ प्रदान करता है जिन्हें इनकी सबसे अधिक आवश्यकता है व साथ ही जनसंख्या को नियंत्रित करता है, व राजकोषीय अभाव को प्रभावित किए बगैर परिवार व्यवस्था बनाए रखता है।


एक वसीयत किस प्रकार तैयार की जाए

पिछले लेख में हमने देखा कि बहुत से लोग वसीयत नहीं बनाते हैं और उनकी मौत के बाद परिवार संपत्ति के लिए द्वेषपूर्ण झगड़ों में संलग्न हो जाते हैं। आश्चर्य की बात यह है कि वसीयत बनाना इतना कठिन नहीं है। केवल एक कागज़ व कलम से भी काम चल सकता है!

एक वसीयत के चार भाग होते हैं, पहला- घोषणा कि आप कौन हो और यह कि आप यह वसीयत पूरे होश में लिख रहे हैं। दूसरा-उस परिसंपत्ति की घोषणा जिनके आप मालिक हैं। यह स्वर्ण व गहनों से लेकर आपकी अलमारी में रखी हुई नकदी भी हो सकती हैं। तीसरा-संपत्ति स्वामित्व का विवरण। कभी कभी परिसंपत्ति किसी के साथ संयुक्त स्वामित्व में होती है और कई बार वे पैतृक संपत्ति होती है। पैतृक संपत्ति के लिए हिंदु कानून अलग है आपको यह घोषणा करने की आवश्यकता है कि वसीयत में आपके द्वारा उल्लेखित संपत्ति आपके द्वारा उत्पन्न की गई है अथवा नहीं। चौथा और अंतिम भागः हस्ताक्षर। आपको उन कुछ गवाहों के सामने हस्ताक्षर करने की आवश्यकता है जिनका वसीयत में कोई स्वार्थ निहित नहीं है। आदर्श रूप में चिकित्सक व वकील सबसे अच्छे गवाह हैं। एक देखेगा कि आपका मन स्वस्थ है और दूसरा आपकी वसीयत का आलेखन देखेगा।

आप स्वयं की लिखावट के साथ एक सादे कागज़ में वसीयत तैयार कर सकते हैं। आपको एक स्टांप पेपर या कानूनी कागज़ की आवश्यकता नहीं है। आपका 21 वर्ष अथवा उससे अधिक का होना आवश्यक है व सबसे महत्त्वपूर्ण आपको संपत्ति की आवश्यकता है। संपत्ति का मूल्य अनावश्यक है परंतु संपत्ति होना आवश्यक है।

आमतौर पर नवीनतम वसीयत ही अंतिम वसीयत है व निष्पादन के लिए उसे ही वैध दस्तावेज़ माना जाएगा, इसलिए दिनांक हमेशा लिखें। हालांकि, यह उल्लेख करना सुरक्षित है कि यह अंतिम वसीयत है और यह पिछली वसीयत को प्रतिस्थापित करता है ताकि कोई भ्रम ना रहे। कभी कभी नई परिसंपत्ति भी खरीद ली जाती है, कई बार नए उत्तराधिकारी आ जाते हैं, तो यह सलाह दी जाती है कि हर वर्ष वसीयत का नवीनीकरण किया जाना चाहिए। 

तो क्या वसीयत तैयार करने के लिए आपको वकीलों की आवश्यकता होगी?

एक वसीयत बनाना काफी आसान है। हालांकि, यदि कई वंशज व कई सारी संपत्ति है, तो ऐसी स्थिति में वकीलों की सेवाएं प्राप्त करने की सलाह दी जाती है। निष्पादक एक व्यक्ति है जो वसीयत में आपके निर्देशों का अनुसरण करता है। भारत में न्यायिक मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में अदालत में वसीयत तैयार करना न्यायिक तौर पर आवश्यक नहीं है। हालांकि यदि आप चाहें, तो वसीयत मजिस्ट्रेट या सरकारी अधिकारियों द्वारा नामित सार्वजनिक नोटरी में कार्यान्वित की जा सकती है व उनकी उपस्थिति में सील की जा सकती है।

वसीयत को एक मोटे कागज़ पर बनाइये क्योंकि इसे लंबे समय तक संभाल कर रखे जाने की आवश्यकता होती है। आदर्श तौर पर इसे एक बैंक के लॉकर अथवा सुरक्षित स्थान पर होना चाहिए और आपको इसके बारे में आपके निष्पादक को सूचित करना चाहिए।

वसीयत तैयार करने की समस्याएं:

पिछले लेख में हमने देखा कि एक वसीयत बनाना काफी सरल है। हालांकि इसका अर्थ यह नहीं है कि इसमें कोई समस्या नहीं है। कुछ ऐसा स्थितियां हैं जो सरल प्रक्रिया को थोड़ा जटिल बना देती हैं।

एक सामान्य उदाहरण परिसंपत्ति के विभाजन का है। तो यदि आपके पास दो संपत्ति है- एक का मूल्य 5 करोड़ है व दूसरी का 1 करोड़ और आप दो बेटों के मध्य बराबर बांटना चाहते हैं। तो दोनों संपत्तियों को विभाजित करने के बजाय आपको दोनो को प्रत्येक संपत्ति में बराबर हिस्सा देने की आवश्यकता है। इससे कभी कभी समसयाएं उत्पन्न हो जाती हैं क्योंकि शायद एक व्यक्ति इसे बेचकर शेयर भुनाने की इच्छा रख सकता है। तो जीवन के उत्तरार्ध के वर्षों में लोग ऐसी संपत्ति खरीदते हैं जो विभाजित की जा सके। जैसे दो फ्लेट/दो प्लाट /दो बंगले ताकि संयुक्त हित की कोई स्थिति ना रहे।

अब मूल्यांकन की समस्या उत्पन्न होती है आपके वसीयत बनाने से लेकर उसका निष्पादन किए जाने तक। तो मान लीजिए कि भिन्न क्षेत्रों में दो फ्लेट हैं दोनो की कीमत 2.5 करोड़ रूपये हैं। लगभग 10 वर्षों बाद जब वास्तव में वसीयत निष्पादित की जाती है, तब दोनों के मूल्य में 2 करोड़ का अंतर होता है। यह भिन्न कारणों की वजह से हो सकता है और लंबे समय की अवधि में संपत्ति का मूल्य समान रूप से नहीं बढ़ता। तब कम मूल्य प्राप्त करने वाला उत्तराधिकारी असंतुष्ट हो सकता है भले ही आपने संपत्ति समान रूप से विभाजित की हो।

हिंदु विभाजित परिवार (एचयूएफ) एक अन्य प्रमुख है जहां संपत्ति रखी जाती है। कुछ वर्षों से महिला सदस्यों को भी एचयूएफ द्वारा संपत्ति में समान अधिकार प्राप्त हैं। आप एचयूएफ संपत्ति को आपकी वसीयत में नहीं रख सकते और यह एक अलग प्रमुख के रूप में कर्ता बदलने के साथ जारी रहेगा।

यदि आपका एक छोटा परिवार है व आपकी पत्नी एकमात्र उत्तराधिकारी है जबकि आपका बच्चा अभी भी अवयस्क है तो वसीयत बनाने व उसका निष्पादन करने के झंझटों से बचना ही ठीक प्रतीत होता है। आप सामान्यतः सभी संपत्ति आपके संयुक्त नाम में रख सकते हैं ताकि यदि आपकी मृत्यु हो जाए तो आपकी पत्नी स्वतः ही मालिक बन जाए। केवल एक मृत्यु प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने से वह संयुक्त बैंक खाते का नियंत्रण प्राप्त कर सकती है, जो संकट के समय बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाता है। संयुक्त स्वामित्व के साथ एक वसीयत आपकी मृत्यु के पश्चात आपकी पत्नी के सामने आने वाली हर समस्या का समाधान करने में सहायता कर सकती है।

तो क्या आप संपत्ति को मूल्य, प्रतिशत या वस्तुओं के आधार पर विभाजित करते हैं। परिसंपत्तियों के मामले में यह एक बड़ी समस्या है क्योंकि यदि आप संपत्ति को एक निश्चित अनुपात में विभाजित करना चाहते हैं- और आप ऐसा मूल्यों पर करते हैं, परंतु वे बदलते हैं व औसत गड़बड़ा जाता है।

जैसा कि हम देख सकते हैं, एक स्पष्ट वसीयत बनाने के बाद भी कुछ समस्याएं हैं। हालांकि यदि आप एक वसीयत के बगैर मर जाते हैं- तो निश्चित ही उससे और अधिक बड़ी समस्याएं उत्पन्न होंगी।


Tuesday 27 September 2016

प्रधानमंत्री व भारतीय रिज़र्व बैंक किस प्रकार गरीब लोगों में बीच बचत को बढ़ावा दे सकते हैं

एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ने कहा -भारत गरीब है, क्योंकि यह गरीब है। हालांकि यह एक आम भावना प्रतीत हो सकती है परंतु इस वाक्य में एक गहरा अर्थ है। भारत को उन उद्योगों की स्थापना करने के लिए जो नौकरियां देते हैं व जनता की आय बढ़ाते हैं, बहुत सारी पूंजी की आवश्यकता है। हालांकि भारतियों के पास निवेश करने के लिए पूंजी नहीं है, वे नौकरी प्रदान नहीं कर सकते और इससे जनता हमेशा गरीब रहती है।

इस चक्र को तोड़ने के लिए हमें घरेलू बचत दर बढ़ाने की आवश्यकता है। अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि यदि भारतीय परिवार की प्रायोज्य आय कम है तो बचत कैसे हो सकती है। तद्यपि बार बार भारतीय ‘‘पोंज़ी’’ योजनाओं के जाल में फस जाते हैं और हर वर्ष हज़ारों करोड़ रूपये चिट फंड, पोंज़ी योजनाओं और तुरंत अमीर बनो योजनाओं के माध्यम से खींच लिये जाते हैं। यह धन कहां से आता है और आम आदमी उसकी बचत बढ़ाने के लिए संरचित वित्तीय साधनों पर क्यों नहीं विश्वास करता?

कारण बहुत सरल है और तब भी अधिकांश नीति निर्माताओं ने इसे नज़रंदाज़ किया है। क्योंकि एक गरीब आदमी कड़ी मेहनत करता है, साधारण ब्याज और नियमित बचत उसे असाधारण रूप से धनी व्यक्ति नहीं बना देंगे। एक निर्धन व्यक्ति को उसके जीवनकाल में धनी बनने का एकमात्र रास्ता एक लॉटरी जीतना, तुरंत अमीर बनने की योजनाओं में में भाग लेना है। गरीब लोग पीढ़ी दर पीढ़ी कानूनी रूप से व कम जोखिम वाले विकल्पों से धनी बनने की आशा खो चुके हैं।

एक समाधान है जिससे हम लोगों को पैसे बचाने के लिए व असाधारण रूप से धनी बनने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं। यह ‘‘प्राईज़ लिंक्ड सेंविग स्कीम’’ कहलाती है। (पीएलएसएस) योजना बहुत सरल है, भाग लेने वाले खातों के हितों का एक भाग एक अलग कोष में रखा जाता है। एक लॉटरी घोषित की जाती है व कोष एक या दो लोगों को वितरित कर दिया जाता है जिससे वे बहुत धनी बन जाते हैं।

उदाहरण के लिए, हमारी प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीव्हाय) में, मौजूदा बयाज दर 4 प्रतिशत है। एक पीएलएसएस खाता शुरू किया गया है और वह 3.7 प्रतिशत ब्याज अर्जित करता है। यह 25 प्रतिशत ब्याज एक खाते में डाल दिया जाता है जो समय समय पर एक विजेता घोषित करता है। तो मान लीजिए कि पीएमजेडीव्हाय में कुल जमा 30,000 करोड़ रूपये हैं। यदि सभी खाते पीएलएसएस में हैं तो एक वर्ष में 25 प्रतिशत बयाज 75 करोड़ रूपये होता है। यह एक करोड़ हर एक को देकर 75 लोगों में वितरित किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त और कोई रास्ता नहीं है जिससे ये लोग इनके जीवन में 75 करोड़ रूपये कमा पाते।

फलस्वरूप यह योजना में भाग लेने वालों की संख्या बढ़ाएगा व कोष एवं विजेताओं की संख्या भी बढ़ाएगा। आप जितनी अधिक बचत करेंगे ईनाम जीतने का उतना अधिक मौका रहेगा; बेशक ऊपरी सीमा के साथ ताकि जो लोग पहले ही धनवान हैं उन्हे लाभ प्राप्त ना हों।

प्राइस लिंक्ड बचत खातों की पेशकश अर्जेंटिना, ब्राज़ील, कोलंबिया, जर्मनी, इंडोनेशिया, ईरान, जापान, मेक्सिको, ओमान, पाकिस्तान, स्पेन, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका, तुर्की, संयुकत अरब अमीरात और वेनेज़ुएला ने भी की है। ईरान में पीएलए जनता के लिए उपलब्ध बचत खातों का सबसे सामान्य रूप है, क्योंकि उन्हें इस्लामिक कानून के अनुपालन के साथ देखा जाता है जिसमें परिसंपत्तियों पर गारंटी ब्याज कमाने की मनाही है।

विश्व भर में कई राष्ट्रों में पीएलएसएस के आगमन ने एक गहरा प्रभाव बनाया है क्योंकि आम जनता के पास जो अब तक केवल सट्टेबाजी या लॉटरियों से परिचित थी, अब ना केवल बचत सुरक्षा की गारंटी है बल्कि लॉटरी के रूप में आकर्षक पुरस्कार देने का वादा भी है। यह जैसा की प्रेस ने हवाला दिया ‘‘बगैर नुकसान वाली लॉटरी’’ है। कहा जा रहा है कि ब्रिटेन में खजाना एक लाख तक पहुँच चुका है।

यह भी माना जाता है कि पीएलएसए ने काफी हद तक लोगों को बचत करने के लिए प्रोत्साहित किया है। संयुक्त राष्ट्र में इसकी स्थापना के 50 वर्षों के साथ व 20 मिलियन लोगों से अधिक के 25 बिलियन पाउंड से अधिक के बराबर राशि के प्रीमियम बांड में निवेश करने के साथ लगता है कि पीएलएसए योजना ने स्वयं को मजबूती से स्थापित कर लिया है।

इस योजना का सबसे बड़ा लाभ यह रहा है कि यह बचत ना करने वाले लोगों को भी बैंक तक लेकर आने में सफल हुई है व लोगों के मस्तिष्क में यह बात बिठाने ने सफल हुई है कि सही कार्य करना भी आपको किसी दिन करोड़पति बना देगा।

मुझे यकीन है अमिताभ बच्चन ब्रांड एंबेसडर बनने के लिए सहमत होंगे और प्रत्येक भारतीय से पूछेंगे-कौन बनेगा करोड़पति? जो बचाएगा रोज़ एक पत्ती!

भारत को अभी जीएसटी की आवश्यकता क्यों है

भारत मुख्य रूप से एक कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था है। भारत की अधिकांश जनसंख्या अधिकांश समय कृषि व भोजन उत्पादन गतिविधियों में कार्यरत है। केंद्र सरकार कृषि पर कर लागू नहीं कर सकती क्योंकि यह राज्य के दायरे में आता है। तो भारत को रक्षा/अवसंरचना/सब्सिडी या गरीबी निवारण कार्यक्रमों के लिए निधिकरण करना, भारत की अधिकांश जनसंख्या करों का भुगतान नहीं कर रही है। एकमात्र अपवाद सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क व सेवा कर जैसे अप्रत्यक्ष कर है। ये कर उस प्रत्येक व्यक्ति द्वारा चुकाए जा रहे हैं जो कर लागू किए गए इन उत्पादों को खरीदता है। तो यदि एक धनी कृषक एक लक्ज़री कार खरीदता है- हो सकता है उसने उसके जीवन में आयकर के रूप में एक रूपये का भी भुगतान ना किया हो तद्यपि वह उस खरीदी के लिए उत्पादन शुल्क एवं सीमा शुल्क में लाखों रूपये का भुगतान करेगा।


जब राष्ट्र विकसित होगा तब लोगों को कृषि से अधिक रोजगार निर्माण में प्राप्त होगा। हमने देखा है कि एक राष्ट्र कृषि से बड़े स्तर के निर्माण की ओर बढ़ता है क्योंकि निवेश क्षमता व व्यय क्षमता बढ़ जाती है। निर्माण के बाद का अगला कदम सेवाएं हैं, जो जनसंख्या के एक बड़े भाग को रोजगार प्रदान करती है। निर्माण दुर्भाग्य से चीन में स्थानांतरित हो गया है और भारत के पास विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी उद्योगों में से कुछ ही हैं। तो भारत को उसकी अर्थव्यवस्था का विकास करने के लिए कृषि से सीधे सेवा क्षेत्र में छलांग लगानी होगी।


यहीं पर वस्तु एवं सेवा कर को अपनाना भारत के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। एक राष्ट्र के तौर पर हम खाद्य से अधिक सेवाओं का उपभोग कर रहे हैं। हम खाद्य को उसके कच्चे रूप की बजाय शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, पर्यटन, भोजन की सेवाएं एवं कई अन्य सेवाओं में अधिक व्यय करते हैं। उदाहरण के लिए आप आपकी कार को सुधारने ले जाते हैं, वे भाग जो बदले गए हैं उनपर उत्पाद शुल्क लागू होता है, (सीमा शुल्क यदि उनका आयात किया गया है), राज्य बिक्री कर-वैट। प्रदान की गई श्रम सेवाओं के लिए आपको सेवा कर का भुगतान करना होता है। इससे मिलती जुलती स्थिति तब उत्पन्न होती है जब आप निर्माणाधीन संपत्ति खरीदते हैं जहां आपको वैट व सेवा कर का भुगतान करना होता है। ये दो पृथक कर हैं व दो पृथक सेवाओं पर चुकाए जाने हैं। हालांकि सबसे बुरी समस्या सॉफ्टवेयर खरीदना है, हमें एक ही उत्पाद पर वैट व सेवा शुल्क दोनों को भुगतान करना होता है।

भारत को उसके सकल घरेलू उत्पाद बढ़ाने के लिए ऐसी जटिलताओं का समाधान करना होगा। कैफे कॉफ़ी  डे में लगभग 100/- रूपये की कॉफ़ी खरीदने का आदर्श उदाहरण लेते हैं। पैसे का सबसे कम भाग उस किसान को जाएगा जो वास्तव में कॉफ़ी उगाता है। दूध का उत्पादन करने वाले डेयरी कृषक को उससे थोड़ा सा अधिक प्राप्त होगा, हालांकि सबसे अधिक हिस्सा सीसीडी को प्राप्त होगा। इससे पता चलता है कि लाभ की गुंजाइश के संदर्भ में सेवाओं की तुलना में कृषि व निर्माण ने पिछला स्थान ले लिया है। इसी तरह से सरकार को देश की बदलती अर्थव्यवस्था के समान कर संरचना तैयार करनी चाहिए।

जीएसटी के पारित होने के साथ हम विश्व को दिखा सकते हैं कि भारत एक प्रगतिशील व व्यापार अनुकूल राष्ट्र है। यह विभिन्न क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ाएगा जिन्हें पैसों की अत्यधिक आवश्यकता है। इसलिए जीएसटी कोई नया कर या नया कानून नहीं है यह राज्य एवं केंद्र के लगभग सभी अप्रत्यक्ष करों को केवल एक विधान में संयोजित कर रहा है। परंतु हम विश्व को एक स्पष्ट संकेत देंगे कि हम एक एकजुट राष्ट्र हैं व व्यापार के लिए तैयार हैं!

सॉफ्टवेयर वस्तु है अथवा सेवा

विश्व में आज भारत को सॉफ्टवेयर प्रमुख के रूप में अच्छी तरह से जाना जाता है। विश्व में भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनियों का उनकी लागत कुशलता व जनशक्ति की गुणवत्ता के लिए सम्मान किया जाता है। जिस प्रकार से जर्मनी उसकी कारों के लिए जाना जाता है, भारत विश्व भर में उसके सॉफ्टवेयर के लिए जाना जाता है।

हालांकि भारत सरकार सॉफ्टवेयर उद्योग के साथ सौतेली माता जैसा व्यवहार करती है।

भारत में एक सॉफ्टवेयर खरीदने पर दो तरह के कर लागू होते हैं जो पूरी राशि के लिए एकल लेनदेन पर अन्यथा कभी एकसाथ लागू नहीं होते हैं।

भारत में कानून काफी आसान है, यदि आप एक वस्तु खरीदते हैं तो आपको राज्य बिक्री कर का भुगतान करना होगा जो वैट कहलाता है और यदि आप सेवा खरीदते हैं तो आपको केंद्रीय सेवा कर का भुगतान करना होता है जिसे एसटी कहा जाता है। अब राज्य सरकारों ने लायसेंस वाले सॉफ्टवेयर को वस्तुके रूप में वर्गीकृत किया है और इसलिए वैट लागू होता है। जबकि केंद्र सरकार कहती है कि सॉफ्टवेयर एक सेवाहै और इसलिए एसटी लागू है।

काफी निर्णय विधियों व सूचनाओं द्वारा स्पष्ट किए जाने पर भी कि दोनों में से एक कर लागू होने योग्य है, आज अधिकांश कंपनियां दो स्वतंत्र कर प्राधिकरणों द्वारा परेशान होती हैं। तो सुरक्षित पक्ष पर अधिकांश कंपनियां दोनों कर प्रभारित करती हैं!

तो यदि आप 100 रूपये मूल्य का सॉफ्टवेयर पैकेज खरीदते हैं तो आप एसटी के रूप में 14 रूपये व वैट के रूप में 4 रूपये का भुगतान करते हैं। तो फलस्वरूप आप कर के रूप में 18 रूपये का भुगतान करते हैं और कुल मिलाकर आप 118 रूपये का भुगतान करते हैं। यदि सॉफ्टवेयर आयात किया गया है तो निश्चित ही कंपनी को सीमा शुल्क का भुगतान करना होता है और यदि यह तब भी पैसे कमा लेता है तो आयकर प्रभारित किया जाता है।

यदि भारत अपने सॉफ्टवेयर निर्यात में वृद्धि करना चाहता है तो इसे सॉफ्टवेयर कंपनियों को आगे बढ़ने व पनपने के लिए अनुकूल जलवायु देना चाहिए। किसी भी जटिल सॉफ्टवेयर को जिसे लिखे जाने की आवश्यकता है पहले पैकेज सॉफ्टवेयर खरीदना होता है। तो हर एक सॉफ्टवेयर निर्यातक को कई सारे लायसेंस वाले सॉफ्टवेयर खरीदने होते हैं। निर्यातक कंपनियों की सहायता करने की बजाय सरकार उनपर दुगना कर प्रभारित कर रही है।

कल्पना कीजिए यदि जर्मनी उनकी कारों पर दुगना कर लागू करे तो क्या उसके पास इतनी अत्यधिक विकसित कार की कंपनियां होंगी?

जीएसटी इस प्रकार की विसंगतियों में एक स्पष्टता लाएगा। चाहे वह वस्तु हो अथवा सेवा कानून उन दोनों को दायरे में लेगा और इसलिए दुगना कर लागू नहीं किया जाएगा।

Friday 23 September 2016

क्या आयकर विभाग ने आप पर ध्यान दिया?

यदि आप उन हज़ारों लोगों में से एक हैं जिन्हे विस्तरित सीमा के भीतर आयकर रिटर्न दाखिल ना के कारण समन प्राप्त हुआ है, तो चिंता मत कीजिए आप अकेले नहीं हैं। यह रिटर्न दाखिल करने का सही अवसर है। कई लोग घबराहट की स्थिति में आ जाते हैं जबकि अन्य केवल समन को नज़रंदाज़ कर देते हैं। दोनों ही प्रतिक्रियाएं सही नहीं हैं। बस एक सीए (अधिकृत लेखापाल) या आयकर व्यवसायी से चर्चा करें व समय रहते एक रिटर्न दाखिल करें।

एक व्यक्ति जो कुछ वर्षों पहले सेवानिवृत्त हो गया, उसे आयकर विभाग द्वारा समन प्राप्त हुआ जिसमें यह प्रश्न किया गया था कि उसने निर्धारण वर्ष 2014-15 के लिए कर रिटर्न दाखिल क्यों नहीं किया (जिसमें वर्ष 2013-14 में होने वाली आय का विवरण दिया गया है)। उसने मान लिया था कि चूंकि उसे एक वेतनबद्ध आय प्राप्त होना समाप्त हो गई थी तो उसे आयकर रिटर्न दाखिल करने की कोई आवश्यकता नहीं है। उसने पूर्वानुमानित कर लिया कि सावधि जमा ब्याज व एक संस्थान में दिये गए व्याख्यान के लिए प्राप्त हुई राशि को सूचित नहीं किया जाएगा। हालांकि आज का सूचना प्रौद्योगिकी द्वारा संचालित आयकर विभाग उन लोगों के डेटा पर कार्य कर रहा है जिनके टीडीएस की कटौती की गई है व रिटर्न दाखिल नहीं कर रहे हैं। तो इस प्रकार के लोग रिटर्न दाखिल करने से बच नहीं सकते हैं।

इसी तरह, गुमस्तधारा की दुकानों के संबंध में डेटा प्राप्त किया गया है। एक दुकान मालिक को फरवरी व मार्च में एक एसएमएस प्राप्त हुआ जिसमें प्रश्न किया गया था कि दुकान/फर्म से रिटर्न क्यों दाखिल नहीं किया गया था। यदि वह एक मालिक के रूप में रिटर्न दाखिल कर रहा है तो उसे चिंता करने की आवश्यकता नहीं है- परंतु उसे उचित रूप से समन का जवाब देना चाहिए।

आयकर विभिन्न एजेंसियों से डेटा एकत्र कर रहा है व उसे स्थायी खाता संख्या (पैन) के साथ जोड़ रहा है व उन लोगों को समन भेज रहा है जिन्होंने एक उपयुक्त रिटर्न दाखिल नहीं किया है। वे एसएमएस, ई-मेल व पत्र के माध्यम से संवाद करते हैं। डेटा वार्षिक सूचना वापसी, टीडीएस वापसी एवं आयकर विभाग के निपटान के विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त हो सकता है।

वर्तमान सरकार का यह मानना है कि यदि बहुत से लोग करों का भुगतान करेंगे तो भले ही हर व्यक्ति एक छोटी राशि का भुगतान करेगा, समग्र संग्रह एक बहुत बड़ी संख्या होगी। प्रारंभ करने के लिए सरकार उन लोगों को देख रही है जिन्होने 2011-12 से 2013-14 तक रिटर्न भरा परंतु 2014-15 में रिटर्न नहीं भरा है। सरकार का विचार कर आधार को विस्तृत करना है। उदाहरण के लिए, भारत की 125 करोड़ जनसंख्या की तुलना में 5 करोड़ से भी कम लोग रिटर्न दाखिल करते हैं। यह विभिन्न कारणों से हो सकता है जैसे की गरीबी, कृषि आय पर प्रदान की गई छूट। हालांकि, यह बात समझ के बाहर है कि 23 करोड़ लोग जिनके पास पैन है, उनमें से केवल 5 करोड़ लोग आईटी रिटर्न दाखिल करते हैं। यह विसंगति भारत में हमेशा से रही है हालांकि अब भी कोई सरकार इसे हल करने में सक्षम नहीं हुई है।

सरकार इन प्रयासों का कुछ फल प्राप्त कर रही है। 2013, 2014 एवं 2015 के दौरान लगभग 30,68,662 नए रिटर्न भरे गए व अभियान के बाद 4,733.61 करोड़ रूपये का अतिरिकत कर एकत्रित किया गया था। वास्तव में, पहले दौर में 12.9 लाख दाखिल ना करने वालों की पहचान की गई व विभाग को 5,36,220 रिटर्न प्राप्त करने में सहायता प्राप्त हुई जिससे स्वतः निर्धारण कर के रूप में 1,017,87 करोड़ रूपये व अग्रिम कर के रूप में 898.22 करोड़ रूपये एकत्रित हुए। करेाड़ो लोग जिन्हें हमें जोड़ने की आवश्यकता है के सामने यह नाममात्र राशि है। उदाहरण के लिए संयुक्त राज्य की 30 प्रतिशत जनसंख्या रिटर्न दाखिल करती है। वहीं दूसरी तरफ भारत की केवल 4 प्रतिशत। तो करोड़ों लोगों को उनका कर रिटर्न दाखिल करने के लिए मनाने में समय लगेगा- बहुत लंबा समय।

इसलिए सरकार द्वारा किये गये प्रयासें की सराहना की जा रही है- परंतु अब भी एक लंबा रास्ता तय करना है। 

क्या जीएसटी पर्यटन व पर्यटकों का व्यय बढ़ाने में सहायता कर सकता है?

एक तत्काल प्रश्न जो मन में उठता है कि प्रस्तावित वस्तु एवं सेवा कर का पर्यटन व खासतौर पर पर्यटकों के व्यय से क्या संबंध है।

हम आधारभूत प्रश्न की तरफ बढते हैं जो किसी भी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था को चलाता है। आज के युग में कोई भी राष्ट्र तैल, सोना, प्रोद्योगिकी व रक्षा उत्पादों जैसी वस्तुओं का आयात किए बगैर गुज़ारा नहीं कर सकता। आयात करने के लिए हमें कुछ वस्तुओं का निर्यात करने की आवश्यकता होती है। निर्यात को बढ़ावा देने के लिए सरकार निर्यात को शुल्क मुक्त कर देती है। भले ही निर्यात राष्ट्र की भौगोलिक सीमा के भीतर ही क्यों ना किया गया हो? उदाहरण के लिए एक रूसी व्यक्ति लॉ गार्डन से ‘‘चनिया चोली’’ खरीदता है, क्या वह निर्यात है?

विश्व में लगभग 50 राष्ट्रों के पास ‘‘जीएसटी वापसी’’ नाम की एक प्रणाली है। इन राष्ट्रों में पर्यटकों द्वारा उनकी यात्रा के दौरान चुकाया गया कोई भी कर वापसी योग्य है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कुछ राष्ट्रों में जीएसटी दरों का 20 प्रतिशत होना एक भारी छूट प्राप्त होने जैसा है। इससे पर्यटकों का व्यय अधिक मात्रा में होता है और इसके अतिरिक्त यह अधिक पर्यटकों को आकर्षित करता है। प्रणाली बहुत सरल है, आपको बिल संभाल कर रखने होंगे और हवाई अड्डे पर सुरक्षा जाँच के बाद आपको सभी बिलों के साथ आपका पासपोर्ट एवं बोर्डिंग पास प्रस्तुत करना होगा। आपको मौके पर ही कर वापसी प्राप्त हो जाती है। शर्तें आसान हैं जैसे 6 महीने से कम का आवास व वैध रसीदें।

एक अन्य प्रश्न पूछा जा सकता है कि पर्यटन कितना बड़ा हो सकता है? पर्यटन की दृष्टि से पहले स्थान के राष्ट्र फ्रांस को हर वर्ष लगभग 8.4 करोड़ पर्यटक प्राप्त होते हैं और दूसरे स्थान वाले संयुक्त राज्य को 7.5 करोड़ पर्यटक प्राप्त होते हैं। हालांकि खर्च की दृष्टि से संयुक्त राज्य को 177 बिलियन डॉलर का व्यय प्राप्त होता है जबकि फ्रांस को मात्र 55 बिलियन डॉलर प्राप्त होता है। भारत को 77 लाख पर्यटक प्राप्त होते हैं व पर्यटकों के व्यय के रूप में 19 बिलियन डॉलर प्राप्त होते हैं। हम इन प्रमुखों से कहीं अधिक पीछे हैं। एशिया में भी हम शीर्ष 10 कंपनियों में से एक नहीं हैं। हमारे राष्ट्रों का निर्यात बनाए रखने के लिए हमें पर्यटक अनुकूल होने की आवश्यकता है। आगमन पर वीज़ा व हमारे कई सारे पर्यटक अनुकूल उपायों के द्वारा सरकार सही कदम उठा रही है। जीएसटी रोलआउट एक रूपरेखा भी बना सकती है जो यह सुनिश्चित कर सके कि पर्यटकों को राष्ट्र से वापस जाते समय कर वापसी दी जा रही है। इससे स्वतः ही दुकानदारों को एक उपयुक्त बिल देने व उन करों को दर्ज करने की आवश्यकता होगी जो उसने वसूल किए हैं। कर अनुपालन सुधारने के सरकार के लक्ष्य के लिए एक विशाल छलांग।

वसीयत बनाने का महत्व

वसीयत बनाने का विचार तब आता है जब किसी व्यक्ति के पास संपत्ति हो और वह महसूस करे कि उसका अंतिम समय निकट है। हम कितनी सारी फिल्में देखते हैं जिनमें कहानी का केंद्र वसीयत होती है फिर भी संपत्ति वाले सभी लोग उनके जीवनकाल में वसीयत नहीं बनाते। न्यायालयों में उचित वसीयत के आभाव के कारण विवादों से संबंधित कई सारे मामले लंबित हैं। दुर्भाग्य से वसीयत के महत्व के बारे में अभी तक बड़ी मात्रा में जागरूकता नहीं है। जब भी हम वसीयत के विषय में बात करते हैं आमतौर पर लोग नकारात्मक भावनाओं के बारे में सोचते हैं व उस विषय से बचते हैं। हालांकि हमें यह समझना चाहिये कि वसीयत बनाने का अर्थ यह नहीं है कि आप मरने वाले हैं। इसका अर्थ केवल यह है कि आप तैयार हैं। अधिकांश युवा लोग एक वसीयत नहीं बनाते हैं-जो एक भूल है।  आपके पास वसीयत होने से जीवनसाथी के नाम पर संपत्ति स्थानांतरित करना आसान हो जाता है।

आमतौर पर परिवार तब तक एकजुट रहते हैं जब तक परिवार का मुखिया जीवित होता है। हालांकि उसके मरने के बाद समीकरण बदल सकते हैं। परिवार के सभी सदस्यों के हित की रक्षा करने के लिए वसीयत का होना अनुशंसित किया जाता है। वर्तमान में आपकी संपत्ति चाहे कितनी भी कम क्यों ना हो आप एक वसीयत बना सकते हैं इससे आपकी मृत्यु के पश्चात वास्तविक उत्तराधिकारियों को संपत्ति अवस्तांतरित करना आसान करेगा। वसीयत को लेकर विवाद के सबसे प्रसिद्ध मामलों में से एक श्री धीरूभाई अंबानी का है। वसीयत बनाए बगैर उनका देहांत हो गया और इस तथ्य के कारण उत्पन्न होने वाले पारिवारिक झगड़ों की वजह से रिलायंस के निवेशकों को परेशानी झेलनी पड़ी। कानून स्पष्ट है कि जब कोई व्यक्ति बगैर वसीयत के मर जाता है तो संपत्ति उसकी पत्नी व बच्चों में विभाजित की जाती है। हालांकि दो समस्याएं हैं जो विवाद को जन्म देती हैं। पहली यह कि कौन सी संपत्ति किस के पास रहेगी? तो यदि आपके पास एक पारिवारिक विरासत है और बेटे उसे परिवार मेंही रखना चाहते हैं व बेटियों को नहीं देना चाहते हैं- बाज़ार मूल्य उतना होने पर भी, यह समस्या उत्पन्न करता है। अन्य श्रेष्ठ उदाहरण संपत्ति उद्धव विभाजिता का है। तो यदि आपके पास एक संपत्ति है जिसका मूल्य 5 करोड़ है व 1 करोड़ नकद है। यदि आप दो भागों को समान रूप से विभाजित करना चाहते हैं तो संपत्ति को बेचा जाना होगा। यदि वह एक विपणन संपत्ति है तो यह उचित प्रतीत होता है, हालांकि यदि वह कंपनी में शेयर को संचालित कर रही है-तो शेयरों का अवमूल्यन किए बगैर इसे बेचना मुश्किल होगा।

इसलिए यह सलाह दी जाती है कि एक वसीयत बनाई जाए व स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाए कि कौनसी संपत्ति किसे प्राप्त होगी। यहाँ तक की कई लोग इस प्रकार से निवेश करते हैं कि विभाजित करने में आसान हो एवं मूल्य उस अनुपात के अनुसार हो जिस प्रकार वह विभाजित करना चाहते हैं।

जिस प्रकार ईसाई मृत व्यक्ति के लिए कामना करते हैं-आपकी आत्मा को शांति मिले-यदि आप वास्तव में मरने के पश्चात शांति प्राप्त करना चाहते हैं, तो एक स्पष्ट वसीयत बनाएं! 

उपकर क्या है और यह कर से किस तरह अलग है

सरकार के कई प्रकार के राजस्व होते हैं जैसे कर, शुल्क, उपकर, दंड, जुर्माना आदि। प्रत्येक राजस्व स्त्रोत का उपयोग नियम व विनियमन के अनुसार करना होता है जिसके तहत यह एकत्रित किया जाता है। भारत में प्रत्यक्ष कर कम हो रहे हैं-पहले हमारे यहाँ धन कर एवं उपहार कर होते थे। अब हमारे पास केवल आयकर है। शुल्क ऐसा कुछ है जो एक विक्रेता करदाता से एकत्रित करता है और फिर उसका भुगतान सरकार को करता है। उत्पाद शुल्क व सीमा शुल्क भारत में लगाए गए अप्रत्यक्ष कर के उदाहरण है।


यदि आप एक कानून तोड़ते हैं तो आप जुर्माने व दंड के अधीन हैं। ये उस करदाता को दंडित करने के उद्देश्य से लगाए जाते हैं ताकि वह कानून का अनुपालन करे।

सरकार द्वारा एकत्रित सभी कर एवं शुल्क को राज्य के साथ उस अनुपात में बांटा जाना होता है जिसका निर्णय पहले हो चुका है। कर का बड़ा हिस्सा उस राज्य को जाता है जहाँ से उसे एकत्रित किया गया था। इन करों को हर वर्ष वित्त विधेयक का एक भाग होना आवश्यक है एवं हर वर्ष संसद से स्वीकृति प्राप्त करना आवश्यक है।

उपकर कर, शुल्क, जुर्माना एवं दंड से पूर्णतः भिन्न है। उपकर कर पर एक कर है। तो वस्तुतः यह एक अलग अधिनियम द्वारा नहीं लगाया गया है ना ही इसे एकत्रित करने के लिए अलग प्राधिकरण हैं। तो आयकर पर 1 प्रतिशत कर का अर्थ होगा कि आप 100 रूपये कमा रहे हैं और आयकर के रूप में 30 रूपये का भुगतान कर रहे हैं, तो 1 प्रतिशत उपकर का अर्थ होगा आपको  सरकार को 30.30 रूपये का भुगतान करना होगा। जहां यह नाममात्र राशि प्रतीत होती है एवं बहस किए जाने योग्य नहीं लगती, भारत सरकार द्वारा एकत्रित किया गया उपकर 2000 से अबतक 4,00,000 करोड़ पार कर चुका है।

विभिन्न प्रकार के उपकर हैं-
  1. विश्वव्यापी सेवा दायित्व निधि
  2. अनुसंधान एवं विकास उपकर
  3. प्राथमिक शिक्षा उपकर
  4. माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक शिक्षा उपकर
  5. राष्ट्रीय स्वच्छ उर्जा उपकर
  6. केंद्रीय सड़क निधि
  7. फीचर फिल्मों पर उपकर
  8. चाय पर उपकर
  9. निर्माण कामगार कल्याण उपकर
कराधान को सरल बनाने के बहाने केंद्र में सरकारें लगातार विभिन्न करों को समाप्त कर रहीं हैं व अधिक उपकर लागू कर रही हैं। कर की तुलना में उपकर लागू करने के अनेक लाभ हैं। सबसे पहला यह कि उपकर भी वे प्राधिकरण ही एकत्र करते हैं जो कर एकत्रित करते हैं। तो कोई अलग रिटर्न दाखिल करना, मूल्यांकन, अपील एवं मुकदमेबाजी नहीं है। दूसरी बात यह की सरकार को उपकर की आय के लिए राज्यों के साथ राजस्व बांटने की आवश्यकता नहीं है। कर की तरह उपकर का भाग राज्य सरकार को नहीं जाता है। तीसरी बात की उपकर उसी उद्देश्य के लिए इस्तमाल किया जा सकता है जिसके लिए उसे एकत्रित किया गया था, हालांकि सरकार को वर्ष दर वर्ष इसका उपयोग करने की आवश्यकता नहीं है तो इससे जवाबदेही सीमित हो जाती है। अंत में एक बार लगाए गए उपकर को कर की तरह हर वर्ष संसद की मंजूरी लेने की आवश्यकता नहीं है।

दुर्भाग्य से उपकर कर का आधार नहीं बढ़ाता या कराधान का एक भिन्न दृष्टिकोण उत्पन्न नहीं करता। भारत को आज कर आधार बढ़ाने की आवश्यकता है। हालांकि उपकर सर्वथा भिन्न कार्य करता है और यह उन लोगों से कर वसूलता है जो पूर्णतः इमानदार होते हैं और इस प्रकार बेईमान लोगों को प्रोत्साहित करता है कि वे बदलें नहीं।

उपकर के साथ सरकार क्या कर रही है?

पिछले लेख में हमने सरकार के राजस्व के विभिन्न प्रकार देखे और किस प्रकार उपकर उन सभी से अलग है। हालांकि उपकर का उपयोग उसे एकत्रित किये गए उद्देश्य के लिए ही करना होता है। कर एवं उपकर के मध्य यह बड़ा अंतर है। विभिन्न केंद्र सरकारें उपकर एकत्रित करने की इस आधारभूत शर्त का पालन करने में विफल रहीं हैं। 

सरकार द्वारा उच्च शिक्षा, सड़क विकास एवं श्रमिकों के कल्याण जैसे विविध प्रयोजनों के लिए एकत्रित किया गया 1.4 लाख करोड़ का कोष अप्रयुक्त पड़ा हुआ है, यह लेखा नियंता के विश्लेषण एवं सरकार के वित्त पर महालेखा परिक्षक की एक रिपोर्ट एवं लोकसभा में मंत्रियों के उत्तरों से पता चलता है।

सरकार ने कुछ उपकरों को जिसके लिए उन्हे एकत्रित किया जा रहा था उनसे भिन्न गतिविधियों की तरफ मोड़ दिया है। प्राथमिक शिक्षा उपकर को ‘‘मध्यान्न भोजन योजना’’ में बदला जाना उतना ही दोहरा हो सकता है क्योंकि इस योजना ने विद्यालय में उपस्थिति सुधारी है हालांकि यह शिक्षा योजना की बजाए पोषण योजना अधिक है। 2004-05 से 2014-15 के प्राथमिक शिक्षा उपकर का मूल्य 1,54,818 करोड़ था। इनमें से 13,298 करोड़ रूपये निष्क्रिय पड़े हैं। अन्य उदाहरण डीज़ल उपकर का है जिसका उद्देश्य सड़कों का निर्माण करने का था, उसका उपयोग रेलवे विस्तार निधि के लिए किया जा रहा है।

कैग की रिपोर्ट में पता चला है कि माध्यमिक और उच्च शिक्षा उपकर (एसएचइसी) के तहत 2006-15 के दौरान एकत्रित किये गये 64,288 करोड़ रूपये अप्रयुक्त पड़े हुए हैं। सभी करदाताओं पर एसएचईसी 1 प्रतिशत की दर पर लागू है। 2015/16 के लिए योजना परिव्यय कहते हैं ‘‘शिक्षा (प्राथमिक) उपकर से प्राप्त 27,575 करोड़ की अनुमानित राशि प्रधानमंत्री शिक्षा कोष में जमा हो जाएगी’’ हालांकि एसएचईसी के लिए इसी तरह के प्रावधान का उल्लेख नहीं किया गया है।

ऐसे समय में जब धनापूर्ति एक आवश्यकता है, इस प्रकार पड़ी अप्रयुक्त निधियों का अर्थव्यवस्था पर बड़ा हानिकारक प्रभाव पड़ेगा।

इसके अतिरिक्त, अप्रैल 2015 में श्रम और रोजगार मंत्री बंडारू दत्तात्रेय द्वारा संसद में दिये गये जवाब से पता चलता है कि ‘‘राज्य सरकारों से प्राप्त हुई जानकारी के अनुसार, दिसंबर 31, 2014 तक एकत्रित किए गये 16,214.51 करोड़ में से 2,859.86 करोड़, जो 17.63 प्रतिशत है, कुल उपकर रूपये की राशि से श्रमिकों के कल्याण के लिए खर्च किया गया है। अन्य शब्दों में, लगभग 13,300 करोड़ रूपये अप्रयुक्त पड़े हुए हैं।

राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा कोष, अनुसंधान एवं विकास उपकर कोष, केंद्रीय सड़क निधि, आयकर कल्याण निधि, सीमा शुल्क और केंद्रीय उत्पाद शुल्क कल्याण कोष और कई निष्क्रिय कोषों में 14,500 करोड़ रूपये अप्रयुक्त पड़े हैं।

सारा अप्रयुक्त पैसा भारत सरकार के ‘‘समेकित खाते’’ के लिये चला जाता है और अगर वह एक नामित निधि में जमा नहीं किया गया है तो उसे जिसके लिए उसे एकत्रित किया गया है उसके अलावा अन्य प्रयोजनों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। तो हम सुरक्षित रूप से मान सकते हैं कि निष्क्रिय धन का दुरूपयोग हो रहा है।

अब एक और उपकर-स्वच्छ भारत उपकर

हमने पिछले लेख में देखा कि सरकार द्वारा विभिन्न प्रकार के उपकर लगाए जाते हैं। ये कोष या तो अप्रयुक्त हैं या मुख्य उद्देश्य से हट गए हैं। इन अप्रयुक्त निधियों के बावजूद सरकार ने दिखा दिया है कि यह उपकर को लेकर उत्सुक है। पहले ही एक स्वच्छ भारत उपकर लगाया जा चुका है और विमानन उद्योग में क्षेत्रीय संपर्क उपकर कर का प्रस्ताव है और चीनी उत्पादन पर उपकर बढ़ता जा रहा है। तम्बाकू और शराब उत्पादों पर एक सवास्थ्य देखभाल कर लगरने का भी प्रस्ताव है।

तो स्वच्छ भारत उपकर का लक्ष्य क्या है? हम सभी जानते हैं कि हमारा राष्ट्र साफ नहीं है और इसे साफ करने के लिए हमें पैसे, नागरिकों की आदतें, नागरिकों के व्यवहार में परिवर्तन और एक चमत्कार की आवश्यकता है। सरकार किस प्रकार एक और उपकर लगा कर उस लक्ष्य को प्राप्त करने की योजना बना रही है? उपकर लगाए जाने व उसे संग्रहित करने का सरकार का ट्रैक रिकार्ड बहुत अच्छा है-13 वर्ष की अवधि में 4,00,000 करोड़ रूपये अच्छा प्रदर्शन है। हालांकि उद्देश्य की दिशा में इसका प्रयोग लगभग ना समझाए जाने योग्य है। विभिन्न उपकर उनके उद्देश्य को पूरा नहीं कर पा रहे हैं और तो और अधिक निष्क्रियता से इस्तेमाल किए जा रहे हैं। उदाहरण के लिए वैश्विक सेवा दायित्व निधि का उद्देश्य सार्वजनिक संस्थान द्वारा ग्रामीण संयोजकता के लिए उपयोग किया जाना था। 13 वर्ष में 66,117 करोड़ रूपये के संग्रह के साथ आप पूरे भारत के संयोजित होने की आशा करेंगे। भारत वास्तव में संयोजित तो है परंतु राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों की वजह से नहीं बल्कि निजी कंपनियों के नेटवर्क के कारण, जबकि इसका आधे से अधिक कोष अप्रयुक्त पड़ा हुआ है।

एक उपकर व विभिन्न मंत्रालयों व विभागों के लिए मंज़ूर सामान्य फंडों के बीच अंतर यह है कि उपकर को वार्षिक रूप से संसद द्वारा पारित किए जाने की आवश्यकता नहीं है यदि वह उसी उद्देश्य के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है जिसके लिए इसे एकत्रित किया गया था। ऐसी कुछ स्थितियां हैं जहां सरकार को निर्बाध धनापूर्ति की आवश्यकता होती है, जहां प्रतिबद्धता लंबे समय की रहती है, और इसलिए वह उपकर लगाने का अधिकार देता है। अन्यथा, निधि के उपयोग के लिए प्रत्येक बार मतदान किया जाना होगा, जो बोझिल है। धन का सही तरह से निर्धारित किया जाना बहुत आवश्यक है जो नहीं किया जा रहा है।

साथ ही, एक नए उपकर को लगाए जाने से पहले, सरकार को एक योजना दिखानी चाहिए कि वह किस प्रकार से कोष का उपयोग करने वाली है। सरकार को जवाबदेह होना होगा ताकि हम पता कर सकें की हमसे एकत्रित किये गये पैसों का उपयोग सही प्रकार से किया जा रहा है।

इतिहास गवाह है कि एकत्रित किये गये उपकर का उपयोग तब तक नहीं किया जाएगा जब तक वह एक अलग कोष में जमा नहीं किया गया है। इसके अलवा ‘‘स्वच्छ भारत’’ का उत्तरदायित्व हर नागरिक पर है, एक और उपकर किस प्रकार सफाई व स्वच्छता की संस्कृति को आत्मसात कर सकता है।

मुझे लगता है कि ‘‘स्वच्छ भारत’’ केवल एक वस्तु को साफ करेगाः बाज़ार में जो भी थोड़ी बहुत संपत्ति है उसे।