Tuesday 13 December 2016

कम जोखिम भरा क्या है- नकदी अर्थव्यवस्था या बगैर नकदी अर्थव्यवस्था?

जब से डिजीटल भुगतान बाज़ार में आए हैं, किसी ना किसी प्रकार की धोखाधड़ी होने की रिपोर्ट हैं। तो क्या विमुद्रीकरण इस तरह के जोखिम बढ़ा देगा? क्या हम सही कदम उठा रहे हैं? सबसे पहले हम यह समझते हैं कि डिजिटल भुगतान प्रणालियों में किस तरह की धोखाधड़ी होती है। अब तक जितने भी मामले सूचित हुए हैं, आमतौर पर हेकर्स द्वारा क्रेडिट व डेबिट कार्ड का विवरण प्राप्त करने तथा पैसों का इस्तेमाल करने के विषय में है। विक्रेता द्वारा अधिक वसूली करने तथा गलत तरीके से वसूली करने के मामले भी सूचित हो रहे हैं। ऐसे दुलर्भ मामले भी हैं जहां उपयोगकर्ता ने पासवर्ड/ पिन के साथ सावधानी नहीं बरती और इसलिए उनके साथ धोखाधड़ी की गई। डिजिटल अर्थव्यवस्था में मूल रूप से धोखाधड़ी की 3 श्रेणियां हैं:

1.    ग्राहक को कोई जानकारी नहीं - हैकिंग धोखाधड़ी
2.    ग्राहक विक्रेता के बारे में कुछ जानता है - अधिक वसूली
3.    ग्राहक लापरवाह है- स्वयं की गलती की वजह से

दूसरा, हम यह विश्लेषण करते हैं कि क्या यह पैसा वापस आएगा या हमेशा के लिए खो जाएगा। यह ऐसा कुछ है जिसकी अखबार व सोशल मीडिया आमतौर पर उपेक्षा करता है। वे सुर्खियों के साथ धोखाधड़ी की रिपोर्ट करते हैं। परंतु वे इस बात की अनदेखी करते हैं कि डिजिटल अर्थव्यवस्था में धोखाधड़ी के पकड़े जाने के बाद अधिकांश पैसा बरामद कर लिया जाता है। बैंकिंग का हमेशा एक परीक्षण होता है। वह सारा पैसा जो एक खाते से दूसरे खाते में जाता है, कुछ सबूत छोड़ता है। एक अच्छे रेस्त्रों में दो लोगों के भोजन की कीमत लगभग 1,000 रूपए होती है। मान लीजिए कि रेस्त्रां जानबूझ कर या अनजाने में 10,000 रूपए के भुगतान की मांग करता है, ग्राहक को क्रेडिट कार्ड मशीन द्वारा उत्पन्न रसीद पर हस्ताक्षर करना होता है। यदि ग्राहक थका हुआ अथवा लापरवाह है व गलत शुल्क पर हस्ताक्षर कर देता है, तो बाद में ग्राहक उसके लिए विवाद कर सकता है। यह साबित करना आसान है कि बिल 1,000 रूपए का था व क्रेडिट कार्ड का शुल्क 10,000 रूपए का था।

हमें यह तथ्य भी समझने की आवश्यकता है कि चोरी व धोखाधड़ी के मामले पहले भी होते थे। बहुत अधिक मात्रा में नकदी ले जा रहे लोगों की भी जेब काट ली जाती है। ऐसे भी कई मामले हुए हैं कि पर्स से कुछ नोट चुरा लिए जाते हैं और चोरी के बारे में कभी पता ही नहीं चलता। बैंक में नकदी जमा करने के लिए जा रहे व्यक्ति को लूट लिया जाता है- यह क्रेडिट कार्ड हैक किए जाने से अधिक आम है।

दुर्भाग्य से मीडिया - चाहे वह सोशल, इलेक्ट्रानिक या प्रिंट हो, नई घटनाओं को अधिक कवरेज देता है। कहानी का आकार व महत्त्व पाठक की रूचि के आधार पर दिया जाता है ना कि आंकडों के आधार पर। नकदी चोरी के अधिकांश मामलों में पैसा बरामद नहीं किया गया है परंतु डिजिटल पैसे चोरी के मामले में अधिकांश बार पैसा बरामद किया गया है।

मैं दो निजी अनुभव बताउंगा- मेरी तुर्की की यात्रा में इस्तांबुल में एक टैक्सी ड्रायवर ने मुझसे तुर्की लीरा लिया। मुझे याद है मैंने उसे एक 50 का व एक 100 का लीरा नोट दिया। उसने तुरंत उसे अपने नोटों के साथ मिला दिया व मुझे कहा कि मैंने उसे केवल दो 50 लीरा ही दिए हैं। मेरे पास यह साबित करने का कोई रास्ता नहीं था व इसके लिए लड़ने का समय भी नहीं था। भाषा भी एक बाधा थी इसलिए अधिक कुछ नहीं किया जा सकता था। बाद में मुझे पता चला कि यह आम धोखाधड़ी है जो इस्तांबुल में टैक्सी ड्राइवर किया करते थे। पैसे जा चुके थे।

अन्य अनुभव यह था कि मेरी विदेश यात्रा के बाद भारत लौटने पर मेरे यात्रा कार्ड में 140 डॉलर रखे हुए थे। एक दिन मुझे एक ई-मेल आया कि 130 डॉलर लंदन में इस्तेमाल किए जा चुके हैं। मैं भारत में था और ऐसा हो ही नहीं सकता था कि मैंने उसका इस्तेमाल किया हो। इसलिए मैने क्रेडिट कार्ड कंपनी को शिकायत की- मुझे एफआईआर करनी पड़ी। हालांकि लगभग 120 दिन बाद पैसा पुनः आ गया व कोई मौद्रिक नुकसान नहीं हुआ।

मुझे लगता है कि डिजिटल भुगतान श्रेष्ठ हैं और चाहे ये 100 प्रतिशत सुरक्षित ना हों परंतु नकदी भुगतान की तुलना में कम जोखिम भरें होंगे। 

Saturday 10 December 2016

भारत मंदी से किस प्रकार बच सकता है?

विमुद्रीकरण मुहिम के साथ अधिकांश लोगों का पूर्वानुमान है कि इसके कारण जीडीपी में एक भारी प्रभाव पड़ेगा। अनुदार आकलन 2 प्रतिशत गिरावट का है हालांकि कई लोगों को अर्थव्यवस्था की अपस्फीती व कुछ उद्योगों की समाप्ति की आशंका है। काले धन पर निर्भर उद्योग जैसे कि अचल संपत्ति व आभूषण, की कीमतें सबसे पहले गिरेंगी। तो भारत व्यापार लेनदेन के इस नए तरीके को प्रारंभ करने के लिए क्या कर सकता है?

1.    तेज़ी से कार्य करनाः केंद्र व राज्य के दोनों के सभी सरकारी विभागों को तेज़ी से कार्य कर नई वास्तविकता को स्वीकार करना होगा। कई सरकारी कर्मचारी अब तक यही बहस कर रहे हैं कि यह एक अच्छा कदम था अथवा नहीं। उन्हें इस तथ्य को स्वीकार कर लेना चाहिए व इस पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए कि उनका संगठन किस प्रकार इस नई अर्थव्यवस्था में वस्तुओं को संभव बना सकता है। उदाहरण के लिए उन्हें क्रेडिट अथवा डेबिट कार्ड में शुल्क स्वीकार करना चाहिए, यदि वे पैसों का भुगतान कर रहे हों- ऐसा केवल बैंक में ही किए जाने की आवश्यकता है।

2.    आयकर में कमीः चूंकि बैंकों में पैसों के साथ अधिक लोग हैं, कराधान के निचले बैंड को 10 प्रतिशत से कम कर 5 प्रतिशत किया जाना चाहिए। इसके अलावा, समग्र आयकर में भी कमी होने की आवश्यकता है। कर आधार बढ़ाने का उद्देश्य केवल आईटी विभाग का होना चाहिए बजाए उन्हीं लोगों पर अधिक कर लगाने के। आयकर को बहुत अधिक सरल होने की आवश्यकता है तथा ‘‘आश्रित” भत्ता प्रावधान शुरू किया जाना चाहिए क्योंकि लोगों तक आधार कार्ड संख्या के माध्यम से पहुंचा जा सकता है।

3.    जीएसटी कम करनाः वस्तु एवं सेवा कर को कुछ हद तक कम किया जाना चाहिए क्योंकि लोगों के खर्च करने की शक्ति पहले की तुलना में कम है। इसे बाद में बढ़ाया जा सकता है-परंतु चूंकि विमुद्रीकरण तथा जीएसटी कार्यान्वन काफी निकट रूप से कार्यान्वित हो रहा है, अवस्थानांतरण सुचारू रूप से किया जाना चाहिए।

4.    स्टाम्प शुल्क अधिनियम में परिवर्तन प्रारंभ किया जाना चाहिएः स्टाम्प शुल्क यह मानता है कि एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हस्तांतरित की गई संपत्ति में काला धन शामिल है। अब काले धन की संभावनाएं बहुत कम है इसलिए स्टाम्प शुल्क जंत्री दरों पर नहीं बल्कि अनुबंध दरों पर वसूला जाना चाहिए। इसके अलावा स्टाम्प शुल्क में भी कमी की जानी चाहिए। स्टाम्प शुल्क के पंजीकरण के लिए नकद अनिवार्य है- परंतु अब उन्हें यह चैक अथवा प्लास्टिक मनी द्वारा भी स्वीकार कर लेना चाहिए।

5.    अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में कारोबार करने में आसानी पर ध्यान केंद्रित होनाः नया व्यापार प्रारंभ करना व मौजूदा व्यापार चलाना किस प्रकार आसान किया जाए इस पर पूरे देश को ध्यान केंद्रित करना चाहिए। अब देश के सकल घरेलु उत्पाद में वृद्धि करने का एकमात्र समाधान प्रतियोगिता व अनुसंधान है।

6.    ब्याज दर में कमी व ऋण आसान बनानाः बैंकों ने पहले ही सावधि जमा दरों को कम करना शुरू कर दिया है परंतु ऋण दरें अब भी कम नहीं हैं। क्रेडिट को तुरंत उपलब्ध बनाने से भारतीय अर्थव्यवस्था को पहले से कहीं ज़्यादा तेज़ी से बढ़त प्राप्त होने में सहायता प्राप्त होगी। संपत्ति पर ऋण अब वास्तविक मूल्यांकन के आधार पर होना चाहिए बजाए कुल कीमत के सफेद भाग के।

7.    शिक्षा को उदार करनाः भारतीय शिक्षा प्रणाली अब भी पुरानी ही है। युवाओं को एक ही राह से रोज़गार प्राप्त हो सकता है और वह उनका शिक्षित होना है। आभूषण व अचल संपत्ति उद्योग बहुत से लोगों को, बगैर किसी शैक्षणिक योग्यता के रोजगार प्रदान किया करते थे। अब यह अतीत की बात है। निजी विद्यालय व महाविद्यालय को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए तथा विदेशी विश्वविद्यालयों को अनुमति दी जानी चाहिए।

8.    आवश्यकता आधारित उद्योगों में निवेशः निजी क्षेत्रों को उनके सफेद धन का निवेश ऐसे उद्योग में करना चाहिए जो आवश्यकता आधारित हो। विलासिता एवं विवेकाधीन खर्च सीमित हो जाएगा- इसलिए इन उद्योगों में निवेश ना करें।

9.    स्थानीय तौर पर उत्पादित स्मार्ट फोन पर उत्पाद शुल्क हटानाः एक स्मार्ट फोन द्वारा डिजिटल पैसा आसानी से सम्पादित किया जाता है। सरकार को स्थानीय स्तर पर उत्पादित स्मार्ट फोन से उत्पाद शुल्क पूरी तरह हटा देना चाहिए। इससे प्रैद्योगिकी का प्रसार बढे़गा एवं डिजीटल प्रबंधन करने की भारत की क्षमता को बढ़ावा मिलेगा।