Monday 27 March 2017

अगले 4 वर्षों में जो छात्र सीए बनेंगे वे पहले ही पुराने हो चुके होंगे!

कराधान भारत के केवल एक ही पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है- चार्टर्ड अकाउंटेंसी पाठ्यक्रम जो चार्टर्ड अकाउंट्स ऑफ इंडिया के संस्थान द्वारा प्रशासित है। पाठ्यक्रम की संरचना के आधार पर मुख्य महत्त्व लेखांकन, लेखा परीक्षा और आयकर पर है। एक व्यक्ति को सीए बनने के लिए दो मुख्य परीक्षाएं उत्तीर्ण करनी पड़ती है - एकीकृत व्यावसायिक योग्यता पाठ्यक्रम (आईपीसीसी) और अंतिम परीक्षा। आईपीसीसी में 50 अंकों का प्रश्नपत्र होता है जो केंद्रीय बिक्री कर और राज्य मूल्य वर्धित कर को समाविष्ट करता है। अंतिम परीक्षा में 100 अंकों का प्रश्नपत्र होता है जो सेवा कर, सीमा शुल्क और केंद्रीय उत्पाद शुल्क (सेनवैट) को समाविष्ट करता है। आईपीसीसी उत्तीर्ण करने के बाद प्रतिभागियों को 3 वर्ष के आर्टिकलशिप प्रशिक्षण से गुज़रना होता है। 3 वर्ष का प्रशिक्षण समाप्त करने के बाद वे अंतिम परीक्षा देने के पात्र होंगे।

जीएसटी के आगमन के साथ -केंद्रीय बिक्री कर, राज्य मूल्य वर्धित कर, सेवा कर में भारी बदलाव होंगे और सेनवैट (केंद्रीय मूल्य योजित कर) में मामूली बदलाव होंगे। आईपीसीसी के जो छात्र मई 2017 की परीक्षा देंगे वे पुरानी कराधान संरचना के लिए ही उपस्थित होंगे।

3 वर्षों तक- अंतिम परीक्षा पास करने वाले सीए के छात्रों ने पुरानी कराधान संरचना पढ़ी होगी। जहां सेनवैट (केंद्रीय मूल्य योजित कर) में बदलाव न्यूनतम हैं- वहीं केंद्रीय बिक्री कर, राज्य मूल्य वर्धित कर और सेवा कर में बदलाव बड़ा है। प्रति वर्ष आयकर अधिनियम में परिवर्तन होता है हालांकि वे बदलाव मामूली होते हैं और उनसे इतना फर्क नहीं पड़ता। खैर जीएसटी एक बड़ा बदलाव है और सीए के विद्यार्थियों को पूरा अधिनियम पढ़ने की आवश्यकता है तभी वे अपने मुवक्किल की उस विषय में सहायता कर पाएंगे। अंतिम आईपीसीसी परीक्षा में उस समूह के लिए, जिसमें अप्रत्यक्ष कर समाविष्ट होते हैं, उत्तीर्ण होने का प्रतिशत लगभग 30 प्रतिशत था। लगभग 62,000 विद्यार्थी जिन्होंने परीक्षा दी थी, उसमें से 19,000 उत्तीर्ण हुए। यह मानते हुए कि अगले वर्ष भी उतनी ही संख्या में लोग उत्तीर्ण होंगे - 3 वर्ष बाद लगभग 40,000 विद्यार्थी होंगे जो अंतिम परीक्षा में उपस्थित होंगे - जो पहले ही पुराने हो चुके हैं।

भारत में लगभग 1.72 लाख चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं जो योग्यता प्राप्त हैं। इनमें से उन्हें जीएसटी में प्रशिक्षित होने की आवश्यकता है जो उनके मुवक्किलों को कराधान के मामले में सहायता करते हैं।
अप्रत्यक्ष करों के क्षेत्र में अभ्यास कर रहे सभी मौजूदा पेशेवरों के लिए सरकार को जीएसटी का एक छोटा पाठ्यक्रम विकसित करना चाहिए। ऐसे कई सलाहकार हैं जो छोटी कंपनियों की सहायता करते हैं लेकिन वे योग्यता प्राप्त सीए नहीं हैं। देश भर में और सभी आकार की कंपनियों में जीएसटी को लागू करने के लिए हमें इन परामर्शदाताओं को प्रशिक्षित करने की आवश्यकता होगी।

जब तक कि आईसीएआई अपना अंतिम सीए पाठ्यक्रम बदल नहीं लेता और उसमें जीएसटी को शामिल नहीं कर लेता - कम से कम 4 वर्षों के लिए हमारे पास ऐसा कोई सीए नहीं होगा जिसने उसकी शिक्षा के एक भाग के रूप में जीएसटी पढ़ा होगा। तो यह समय है कि सरकार को जीएसटी की जानकारी फैलाने के लिए व्यवस्था करनी चाहिए ताकि बड़े पैमाने पर जनता परेशान ना हो।

Thursday 16 February 2017

भारत को आर्थिक विकास के लिए जीडीपी का इंतज़ार करने की आवश्यकता नहीं है।

आर्थिक विकास का अर्थ है देश की आय में बढ़ोतरी। जीडीपी में 7 प्रतिशत बढ़त का अर्थ होगा कि जिस व्यक्ति की आय पिछले वर्ष 100 रूपये थी, वह इस वर्ष 107 रूपये कमाएगा। भारत प्रति व्यक्ति आय के क्रम में 228 देशों में 168 वें स्थान पर है जो सबसे कम में से एक है। यह बुरा है - उदाहरण के लिए फीजी - उसी सूची में 161वें स्थान पर है। केवल एक लंबी अवधि का स्थिर आर्थिक विकास ही भारत को जीडीपी सुधारने में एवं चीन तक पहुंचने में सहायता कर सकता है, जो उतना ही बड़ा देश है परंतु फिर भी 121वें स्थान पर दुगने प्रति व्यक्ति जीडीपी के साथ है।

दूसरी तरफ आर्थिक विकास जीवनयापन की वह गुणवत्ता है जो देश उसके नागरिकों को प्रदान करता है। इसे मापना आमतौर पर आर्थिक विकास मापने जितना आसान नहीं होता। ऐसे कई कारक हैं जो आर्थिक विकास को प्रभावित करते हैं - जिसमें शामिल हैः केलोरी ग्रहण, शिशु मृत्यु दर, जीवन प्रत्याशा, साक्षरता दर, श्रमिकों की व्यावसायिक संरचना एवं शहरीकरण।

विश्वभर में, वे देश जिन्होंने आर्थिक विकास प्राप्त किया है, वे हैं जिन्होंने पहले एक स्तर तक आर्थिक बढ़त प्राप्त की है एवं फिर उन्होंने विकसित होना प्रारंभ किया है। हालांकि भारत एक बहुत कम प्रति व्यक्ति आय पर आर्थिक विकास का अनुभव कर रहा है।

मैं कुछ उदाहरणों द्वारा समझाता हूँ। भारत में शिशु मृत्यु दर प्रति 1000 जन्म 40 मृत्यु के लगभग है। हालांकि वर्तमान में संयुक्त राज्य में शिशु मृत्यु दर प्रति 1000 जन्म 6 मृत्यु है। प्रथम दृष्टि में ऐसा लगता है कि भारत की स्थिति संयुक्त राज्य से 6 गुना बुरी है। हालांकि जब संयुक्त राज्य में प्रति 1000 जन्म 40 मृत्यु थी तब उनकी प्रति व्यक्ति आय भारत की वर्तमान से लगभग 3 गुना थी। उच्च आय का अर्थ है बेहतर स्वास्थ्य देखभाल एवं कम शिशु मृत्यु दर। भारत उसी स्तर की शिशु मृत्यु दर प्राप्त कर सकता है संयुक्त राज्य की एक तिहाई प्रति व्यक्ति आय पर।

बजट में वहन करने योग्य आवास का हाल ही के विस्तार से शहरीकरण को एक बड़ी बढ़त मिलने वाली है। अभी तक केवल 30 प्रतिशत भारत ही शहरों में रहता है - 70 प्रतिशत गावों में रहता है। ग्रामीण निर्धनों को शहरों में लाने के लिए घरों की आवश्यकता है। कई सरकारें वहन करने योग्य आवासों के बारे में बात करती रही हैं एवं इसका अर्थ होगा कि घर खरीदने वालों को शहरों में घर खरीदने के लिए इतना धनी होने की आवश्यकता नहीं है - जितनी आवश्यकता अन्य देशों में है।

भारत में साक्षरता दर निराशाजनक ढंग से कम है - 75 प्रतिशत से कम जबकि चीन 96 प्रतिशत का दावा करता है। हालांकि यहां पर भी पेचीदगी है। भारत के युवा 90 प्रतिशत साक्षर हैं -इसका अर्थ है कि अधिकांश कार्यरत जनसंख्या साक्षर होगी।

देश की व्यावसायिक संरचना एक अविकसित अर्थव्यवस्था में आमतौर पर कृषि है। एक विकासशील अर्थव्यवस्था में नौकरियों का अधिकांश भाग निर्माण में है। और एक पूर्ण विकसित अर्थव्यवस्था में जीडीपी का बड़ा भाग सेवा क्षेत्र से आता है। चीन के विश्व के निर्माण केंद्र बनने के कारण, भारत के पास कृषि से सीधे सेवा अर्थव्यवस्था में कूदने के सिवाए कोई अन्य विकल्प नहीं है। भारत की स्नातक प्राप्त व्यक्तियों की उच्च संख्या के साथ सॉफ्टवेयर में कौशल इसे विकसित विश्व को सेवा निर्यात करने के लिए उपयुक्त उम्मीदवार बनाती है।

भारत को तेज़ आर्थिक विकास की ओर कार्य करना चाहिए तथा आर्थिक बढ़त उसका अनुसरण करेगी।