Thursday 19 January 2017

विमुद्रीकरण को एक सफलता माना जाए अथवा विफलता?

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने विमुद्रीकरण मुहीम 4 स्पष्ट उद्देश्यों के साथ शुरू की थी- नकली नोट, आतंकवाद, काला धन एवं भ्रष्टाचार। भारत की 86 प्रतिशत मुद्रा को बदलने की पूरी क्रिया एक बड़ी सफलता थी या असफलता? आइए हम कुछ प्रश्न पूछते हैं। नकली नोट वे हैं जो भारत में थे तथा कथित तौर पर पाकिस्तान में मुद्रित किए जाते थे। चलन में नकली नोटों का महत्त्वपूर्ण भाग यह था कि उन्हें पहचानना कठिन था। इसलिए नए नोट इस तरह से मुद्रित किए गए हैं कि वे पहचानने में आसान हैं तथा मुद्रित करने में कठिन। अब तक ऐसी कोई घटना नहीं हुई है जिसमें नए नोट नकली पाए गए हों। मुद्रा के नकली मुद्रण के कुछ छोटे प्रयास थे हालांकि वे छोटे स्तर पर थे तथा आसानी से पकड़े गए थे। आने वाले वर्षो में हम देखेंगे कि क्या पाकिस्तान की प्रेसों ने स्वयं को इस प्रकार से नोट छापने के लिए सक्षम कर लिया है जिसे पकड़ा ना जा सके।

आतंकवाद नकली नोटों द्वारा वित्तपोषित किया जाता था और इसलिए यह अपेक्षित था कि आतंकवाद तत्काल कम हो जाना चाहिए। हालांकि, स्वभाव से आतंकवादी अप्रत्याशित लोग हैं- अब तक हमलों का कोई उदाहरण नहीं रहा है इसलिए हम पता नहीं लगा सकते कि आतंकवाद में वृद्धि हुई है या कमी आई है। उदाहरण के लिए, 9 जनवरी 2017 को एक हमला हुआ था जिसमें 3 लोग मारे गए थे तथा एक भारी हथियारों से लैस आतंकवादी मारा गया था। विमुद्रीकरण के समर्थक कहेंगे कि 10 हमलों की योजना बनाई गई थी परंतु नकली नोटों की कमी के कारण केवल एक ही किया गया था। जो लोग विरोध करते हैं वे कहेंगे कि आतंकवाद रूका नहीं है। यदि यह कम भी हुआ है तब भी यह तर्क दिया जा सकता है कि आतंकवादी किसी बड़ी घटना की योजना बना रहे हैं। तो कुछ वर्षों तक यह पता लगाना कठिन है कि क्या विमुद्रीकरण ने आतंकवाद को वास्तव में प्रभावित किया है।

काला धन भारतीय अर्थव्यवस्था कि सबसे बड़ी समस्याओं में से एक था। चूंकि सारे पैसों को बैंक में जमा किया जाना अपेक्षित था, यह माना जा रहा था कि सारा पैसा जो कि काला था, उसे बैंक में घोषित किया जाना कठिन होगा। इस लेख के लिखे जाने तक रिर्जव बैंक ने यह जानकारी घोषित नहीं की है कि कुल कितना पैसा बैंको में जमा किया गया है। आयकर विभाग ने कई सारे छापे मारे हैं तथा नई मुद्रा में बहुत सारा नकद प्राप्त किया है। तो प्रश्न यह उठता है- क्या काला धन कम हुआ है अथवा उतना ही है? आयकर छापे यह साबित नहीं कर सकते हैं कि उन्होंने काले धन का 100 प्रतिशत प्राप्त कर लिया है। आयकर विभाग दावा करता है कि खोजने एवं जब्ती के मामलों में वृद्धि हुई है हालांकि क्या इसका अर्थ यह है कि काला धन कम हुआ है, यह एक बड़ा प्रश्न है। परंतु एक संकेत रियल एस्टेट में मंदी है - जो एकमात्र बाज़ार था जहां बड़ी मात्रा में काले धन का उपयोग होता था। कीमतों एवं सौदों की संख्या में कमी यह आशा प्रदान करती है कि काले धन का चलन कम हुआ है।

भ्रष्टाचार ऐसा कुछ है जिसे मापना कठिन है। घूस देने के लिए नकदी का स्थान सोने ने ले लिया है तथा छोटी रिश्वतों के लिए 2000 के नोटों को ले जाना आसान है। ना हमारे पास पुरानी भ्रष्टाचार संख्या के रिकार्ड थे ना वर्तमान भ्रष्ट अफसरों की संख्या के रिकार्ड हैं। कुल मिलाकर यह पता लगाने में हमें कुछ वर्षों का समय लगेगा कि क्या विमुद्रीकरण एक स्मारकीय विफलता थी या एक मास्टर स्ट्रोक। 

Tuesday 10 January 2017

बजट को भ्रष्टाचार मुक्त सफेद धन के लिए मार्ग प्रशस्त करना चाहिए

विमुद्रीकरण के बिग बैंग सुधार के बाद यह सुनिश्चित करने के लिए कि बिग बैंग सुधार का उद्देश्य पूरा हो, अब सरकार को छोटे सुधारों की एक श्रृंखला का पालन करना चाहिए। आने वाला बजट सत्र ऐसे सुधारों पर केंद्रित होने का सही समय है।

  1. सभी सरकारी राजस्व डिजिटल होने चाहिए -यदि आपने एक संपत्ति खरीदी, तो पंजीकरण दस्तावेज के लिए आपको या तो डीडी बनाने अथवा नकद भुगतान करने की आवश्यकता है। इसके लिए एक व्यक्ति को बैंक से नकद प्राप्त करने की आवश्यकता है। सभी सरकारी भुगतानों को डेबिट कार्ड/क्रेडिट कार्ड या ऐसे अन्य भुगतानों द्वारा डिजीटल बनाया जाना चाहिए। यह नगर निगम से लेकर केंद्र सरकार तक अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए। चुंगी या प्रवेश कर इस प्रकार के कर हैं जिनका भुगतान ट्रक चालकों द्वारा किया जाता है और अधिकांश समय नकद में ही किया जाता है। यदि सरकार कैशलेस होने को लेकर वाकई गंभीर है, तो उन्हें केवल डिजिटल भुगतान की ही अनुमति प्रदान करनी चाहिए। 
  2. सभी सरकारी व्यय अनिवार्य रूप से बैंक भुगतान द्वारा ही किए जाने चाहिए। विक्रेता चाहे कितना भी छोटा क्यों ना हो, उसे बैंक खाते द्वारा ही भुगतान किया जाना चाहिए। खुदरा नकद खर्च पर बहुत सख्त नियंत्रण बनाए रखा जाना चाहिए। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में जहां बैंकिंग प्रवेश कम है, भ्रष्टाचार कम करने के लिए विक्रेताओं को बैंक खाते में ही भुगतान किया जाना चाहिए। 
  3. यहां तक कि टोल, प्रविष्टि तथा यातायात चालान भी डिजिटल तौर पर किया जाना चाहिए। इससे नागरिकों को नकद साथ में लेकर चलने की कोई आवश्यकता नहीं होगी। सूक्ष्म भुगतान को बढ़ावा देने के लिए सरकार नाममात्र की छूट दे सकती है जैसे कि पेट्रोल पंप में 0.75 प्रतिशत। यहां तक कि जब भुगतान प्रणाली सुचारू रूप से की जाएगी, कर्मचारी धोकाधड़ी के मामले भी कम हो जाएंगे। 
  4. सभी सब्सिडीयों का भुगतान आधार से जुड़े बैंक खातों में ही किया जाना चाहिए। सब्सिडी के रूप में एक पैसे की भी नकद कमाई नहीं होनी चाहिए। सरकार द्वारा यह पहले ही विभिन्न स्तरों पर पारित किया जा चुका है, हालांकि सभी सरकारी योजनाओं ने इसे अनिवार्य नहीं बनाया है।
  5. आयकर निर्धारिती जो उनकी आय से खर्च के तौर पर वेतन काटना चाहते हैं उन्हें बैंक खातों को ही वेतन का भुगतान करना चाहिए। यह प्रतिमाह बहुत सी नकद कमाई को समाप्त करेगा। 
  6. हाथ में नकदी करः विमुद्रीकरण के बाद कोई भी व्यक्ति जिसके पास भारी मात्रा में नकद है उस पर कर लगाया जाना चाहिए। कंपनियां हाथ में नकदी दर्शा कर उसका इस्तेमाल भ्रष्टाचार के लिए कर सकती हैं। इसलिए ऐसे नकद पर कर लगाया जाना चाहिए जो बैंक से निकाल लिया गया है परंतु एक समय सीमा के भीतर इस्तेमाल नहीं किया गया है। हाथ पर नकदी की बड़ी मात्रा में जमाखोरी का अर्थ है कि कंपनी का कोई अवैध इरादा है।
  7. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिए कहा जाना चाहिए। भारत के पास सबसे बड़े डाकघर नेटवर्क में से एक है। एक निश्चित जनसंख्या से अधिक वाले प्रत्येक गांव में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक होने चाहिए।
  8. एटीएम की बढ़ोतरीः 125 करोड़ लोगों के देश के लिए कार्य करने के लिए केवल 2 लाख ही एटीएम हैं। इसका अर्थ है कि 6250 लोगों के लिए एक एटीएम। यह मानते हुए कि एक व्यक्ति तीन सदस्यों के परिवार को सहारा दे रहा है, एटीम द्वारा उनकी मासिक नकद प्राप्ति पर 2000 लोग आश्रित होंगे। दुर्भाग्य से ये एटीएम केवल शहरी क्षेत्रों में केंद्रित हैं। यदि हम चाहते हैं कि पूरा देश कैशलेस अर्थव्यवस्था को अपनाए तो हमारा एटीएम नेटवर्क डाकघरों से भी अधिक होना चाहिए।
  9. डेबिट कार्डः इस देश में केवल 7.4 करोड़ डेबिट कार्ड ही हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि लोग कैशलेस अर्थव्यवस्था के विचार से चिंतित हों। लगभग 40 करोड़ बैंक खातों के साथ डेबिट कार्ड उपयोगकर्ताओं की संख्या बहुत कम है। सरकार के लिए यह साबित करने का कि वे एक ‘‘स्वच्छ भारत” के लिए गंभीर हैं, संसद का बजट सत्र एक सुनहरा मौका है।