विमुद्रीकरण मुहिम के साथ अधिकांश लोगों का पूर्वानुमान
है कि इसके कारण जीडीपी में एक भारी प्रभाव पड़ेगा। अनुदार आकलन 2 प्रतिशत गिरावट का
है हालांकि कई लोगों को अर्थव्यवस्था की अपस्फीती व कुछ उद्योगों की समाप्ति की आशंका
है। काले धन पर निर्भर उद्योग जैसे कि अचल संपत्ति व आभूषण, की कीमतें सबसे पहले गिरेंगी।
तो भारत व्यापार लेनदेन के इस नए तरीके को प्रारंभ करने के लिए क्या कर सकता है?
1. तेज़ी
से कार्य करनाः केंद्र व राज्य के दोनों के सभी सरकारी विभागों को तेज़ी से कार्य कर
नई वास्तविकता को स्वीकार करना होगा। कई सरकारी कर्मचारी अब तक यही बहस कर रहे हैं
कि यह एक अच्छा कदम था अथवा नहीं। उन्हें इस तथ्य को स्वीकार कर लेना चाहिए व इस पर
ध्यान केंद्रित करना चाहिए कि उनका संगठन किस प्रकार इस नई अर्थव्यवस्था में वस्तुओं
को संभव बना सकता है। उदाहरण के लिए उन्हें क्रेडिट अथवा डेबिट कार्ड में शुल्क स्वीकार
करना चाहिए, यदि वे पैसों का भुगतान कर रहे हों- ऐसा केवल बैंक में ही किए जाने की
आवश्यकता है।
2. आयकर
में कमीः चूंकि बैंकों में पैसों के साथ अधिक लोग हैं, कराधान के निचले बैंड को 10
प्रतिशत से कम कर 5 प्रतिशत किया जाना चाहिए। इसके अलावा, समग्र आयकर में भी कमी होने
की आवश्यकता है। कर आधार बढ़ाने का उद्देश्य केवल आईटी विभाग का होना चाहिए बजाए उन्हीं
लोगों पर अधिक कर लगाने के। आयकर को बहुत अधिक सरल होने की आवश्यकता है तथा ‘‘आश्रित”
भत्ता प्रावधान शुरू किया जाना चाहिए क्योंकि लोगों तक आधार कार्ड संख्या के माध्यम
से पहुंचा जा सकता है।
3. जीएसटी
कम करनाः वस्तु एवं सेवा कर को कुछ हद तक कम किया जाना चाहिए क्योंकि लोगों के खर्च
करने की शक्ति पहले की तुलना में कम है। इसे बाद में बढ़ाया जा सकता है-परंतु चूंकि
विमुद्रीकरण तथा जीएसटी कार्यान्वन काफी निकट रूप से कार्यान्वित हो रहा है, अवस्थानांतरण
सुचारू रूप से किया जाना चाहिए।
4. स्टाम्प
शुल्क अधिनियम में परिवर्तन प्रारंभ किया जाना चाहिएः स्टाम्प शुल्क यह मानता है कि
एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हस्तांतरित की गई संपत्ति में काला धन शामिल है। अब
काले धन की संभावनाएं बहुत कम है इसलिए स्टाम्प शुल्क जंत्री दरों पर नहीं बल्कि अनुबंध
दरों पर वसूला जाना चाहिए। इसके अलावा स्टाम्प शुल्क में भी कमी की जानी चाहिए। स्टाम्प
शुल्क के पंजीकरण के लिए नकद अनिवार्य है- परंतु अब उन्हें यह चैक अथवा प्लास्टिक मनी
द्वारा भी स्वीकार कर लेना चाहिए।
5. अर्थव्यवस्था
के सभी क्षेत्रों में कारोबार करने में आसानी पर ध्यान केंद्रित होनाः नया व्यापार
प्रारंभ करना व मौजूदा व्यापार चलाना किस प्रकार आसान किया जाए इस पर पूरे देश को ध्यान
केंद्रित करना चाहिए। अब देश के सकल घरेलु उत्पाद में वृद्धि करने का एकमात्र समाधान
प्रतियोगिता व अनुसंधान है।
6. ब्याज
दर में कमी व ऋण आसान बनानाः बैंकों ने पहले ही सावधि जमा दरों को कम करना शुरू कर
दिया है परंतु ऋण दरें अब भी कम नहीं हैं। क्रेडिट को तुरंत उपलब्ध बनाने से भारतीय
अर्थव्यवस्था को पहले से कहीं ज़्यादा तेज़ी से बढ़त प्राप्त होने में सहायता प्राप्त
होगी। संपत्ति पर ऋण अब वास्तविक मूल्यांकन के आधार पर होना चाहिए बजाए कुल कीमत के
सफेद भाग के।
7. शिक्षा
को उदार करनाः भारतीय शिक्षा प्रणाली अब भी पुरानी ही है। युवाओं को एक ही राह से रोज़गार
प्राप्त हो सकता है और वह उनका शिक्षित होना है। आभूषण व अचल संपत्ति उद्योग बहुत से
लोगों को, बगैर किसी शैक्षणिक योग्यता के रोजगार प्रदान किया करते थे। अब यह अतीत की
बात है। निजी विद्यालय व महाविद्यालय को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए तथा विदेशी विश्वविद्यालयों
को अनुमति दी जानी चाहिए।
8. आवश्यकता
आधारित उद्योगों में निवेशः निजी क्षेत्रों को उनके सफेद धन का निवेश ऐसे उद्योग में
करना चाहिए जो आवश्यकता आधारित हो। विलासिता एवं विवेकाधीन खर्च सीमित हो जाएगा- इसलिए
इन उद्योगों में निवेश ना करें।
9. स्थानीय
तौर पर उत्पादित स्मार्ट फोन पर उत्पाद शुल्क हटानाः एक स्मार्ट फोन द्वारा डिजिटल
पैसा आसानी से सम्पादित किया जाता है। सरकार को स्थानीय स्तर पर उत्पादित स्मार्ट फोन
से उत्पाद शुल्क पूरी तरह हटा देना चाहिए। इससे प्रैद्योगिकी का प्रसार बढे़गा एवं
डिजीटल प्रबंधन करने की भारत की क्षमता को बढ़ावा मिलेगा।
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