Tuesday 13 December 2016

कम जोखिम भरा क्या है- नकदी अर्थव्यवस्था या बगैर नकदी अर्थव्यवस्था?

जब से डिजीटल भुगतान बाज़ार में आए हैं, किसी ना किसी प्रकार की धोखाधड़ी होने की रिपोर्ट हैं। तो क्या विमुद्रीकरण इस तरह के जोखिम बढ़ा देगा? क्या हम सही कदम उठा रहे हैं? सबसे पहले हम यह समझते हैं कि डिजिटल भुगतान प्रणालियों में किस तरह की धोखाधड़ी होती है। अब तक जितने भी मामले सूचित हुए हैं, आमतौर पर हेकर्स द्वारा क्रेडिट व डेबिट कार्ड का विवरण प्राप्त करने तथा पैसों का इस्तेमाल करने के विषय में है। विक्रेता द्वारा अधिक वसूली करने तथा गलत तरीके से वसूली करने के मामले भी सूचित हो रहे हैं। ऐसे दुलर्भ मामले भी हैं जहां उपयोगकर्ता ने पासवर्ड/ पिन के साथ सावधानी नहीं बरती और इसलिए उनके साथ धोखाधड़ी की गई। डिजिटल अर्थव्यवस्था में मूल रूप से धोखाधड़ी की 3 श्रेणियां हैं:

1.    ग्राहक को कोई जानकारी नहीं - हैकिंग धोखाधड़ी
2.    ग्राहक विक्रेता के बारे में कुछ जानता है - अधिक वसूली
3.    ग्राहक लापरवाह है- स्वयं की गलती की वजह से

दूसरा, हम यह विश्लेषण करते हैं कि क्या यह पैसा वापस आएगा या हमेशा के लिए खो जाएगा। यह ऐसा कुछ है जिसकी अखबार व सोशल मीडिया आमतौर पर उपेक्षा करता है। वे सुर्खियों के साथ धोखाधड़ी की रिपोर्ट करते हैं। परंतु वे इस बात की अनदेखी करते हैं कि डिजिटल अर्थव्यवस्था में धोखाधड़ी के पकड़े जाने के बाद अधिकांश पैसा बरामद कर लिया जाता है। बैंकिंग का हमेशा एक परीक्षण होता है। वह सारा पैसा जो एक खाते से दूसरे खाते में जाता है, कुछ सबूत छोड़ता है। एक अच्छे रेस्त्रों में दो लोगों के भोजन की कीमत लगभग 1,000 रूपए होती है। मान लीजिए कि रेस्त्रां जानबूझ कर या अनजाने में 10,000 रूपए के भुगतान की मांग करता है, ग्राहक को क्रेडिट कार्ड मशीन द्वारा उत्पन्न रसीद पर हस्ताक्षर करना होता है। यदि ग्राहक थका हुआ अथवा लापरवाह है व गलत शुल्क पर हस्ताक्षर कर देता है, तो बाद में ग्राहक उसके लिए विवाद कर सकता है। यह साबित करना आसान है कि बिल 1,000 रूपए का था व क्रेडिट कार्ड का शुल्क 10,000 रूपए का था।

हमें यह तथ्य भी समझने की आवश्यकता है कि चोरी व धोखाधड़ी के मामले पहले भी होते थे। बहुत अधिक मात्रा में नकदी ले जा रहे लोगों की भी जेब काट ली जाती है। ऐसे भी कई मामले हुए हैं कि पर्स से कुछ नोट चुरा लिए जाते हैं और चोरी के बारे में कभी पता ही नहीं चलता। बैंक में नकदी जमा करने के लिए जा रहे व्यक्ति को लूट लिया जाता है- यह क्रेडिट कार्ड हैक किए जाने से अधिक आम है।

दुर्भाग्य से मीडिया - चाहे वह सोशल, इलेक्ट्रानिक या प्रिंट हो, नई घटनाओं को अधिक कवरेज देता है। कहानी का आकार व महत्त्व पाठक की रूचि के आधार पर दिया जाता है ना कि आंकडों के आधार पर। नकदी चोरी के अधिकांश मामलों में पैसा बरामद नहीं किया गया है परंतु डिजिटल पैसे चोरी के मामले में अधिकांश बार पैसा बरामद किया गया है।

मैं दो निजी अनुभव बताउंगा- मेरी तुर्की की यात्रा में इस्तांबुल में एक टैक्सी ड्रायवर ने मुझसे तुर्की लीरा लिया। मुझे याद है मैंने उसे एक 50 का व एक 100 का लीरा नोट दिया। उसने तुरंत उसे अपने नोटों के साथ मिला दिया व मुझे कहा कि मैंने उसे केवल दो 50 लीरा ही दिए हैं। मेरे पास यह साबित करने का कोई रास्ता नहीं था व इसके लिए लड़ने का समय भी नहीं था। भाषा भी एक बाधा थी इसलिए अधिक कुछ नहीं किया जा सकता था। बाद में मुझे पता चला कि यह आम धोखाधड़ी है जो इस्तांबुल में टैक्सी ड्राइवर किया करते थे। पैसे जा चुके थे।

अन्य अनुभव यह था कि मेरी विदेश यात्रा के बाद भारत लौटने पर मेरे यात्रा कार्ड में 140 डॉलर रखे हुए थे। एक दिन मुझे एक ई-मेल आया कि 130 डॉलर लंदन में इस्तेमाल किए जा चुके हैं। मैं भारत में था और ऐसा हो ही नहीं सकता था कि मैंने उसका इस्तेमाल किया हो। इसलिए मैने क्रेडिट कार्ड कंपनी को शिकायत की- मुझे एफआईआर करनी पड़ी। हालांकि लगभग 120 दिन बाद पैसा पुनः आ गया व कोई मौद्रिक नुकसान नहीं हुआ।

मुझे लगता है कि डिजिटल भुगतान श्रेष्ठ हैं और चाहे ये 100 प्रतिशत सुरक्षित ना हों परंतु नकदी भुगतान की तुलना में कम जोखिम भरें होंगे। 

Saturday 10 December 2016

भारत मंदी से किस प्रकार बच सकता है?

विमुद्रीकरण मुहिम के साथ अधिकांश लोगों का पूर्वानुमान है कि इसके कारण जीडीपी में एक भारी प्रभाव पड़ेगा। अनुदार आकलन 2 प्रतिशत गिरावट का है हालांकि कई लोगों को अर्थव्यवस्था की अपस्फीती व कुछ उद्योगों की समाप्ति की आशंका है। काले धन पर निर्भर उद्योग जैसे कि अचल संपत्ति व आभूषण, की कीमतें सबसे पहले गिरेंगी। तो भारत व्यापार लेनदेन के इस नए तरीके को प्रारंभ करने के लिए क्या कर सकता है?

1.    तेज़ी से कार्य करनाः केंद्र व राज्य के दोनों के सभी सरकारी विभागों को तेज़ी से कार्य कर नई वास्तविकता को स्वीकार करना होगा। कई सरकारी कर्मचारी अब तक यही बहस कर रहे हैं कि यह एक अच्छा कदम था अथवा नहीं। उन्हें इस तथ्य को स्वीकार कर लेना चाहिए व इस पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए कि उनका संगठन किस प्रकार इस नई अर्थव्यवस्था में वस्तुओं को संभव बना सकता है। उदाहरण के लिए उन्हें क्रेडिट अथवा डेबिट कार्ड में शुल्क स्वीकार करना चाहिए, यदि वे पैसों का भुगतान कर रहे हों- ऐसा केवल बैंक में ही किए जाने की आवश्यकता है।

2.    आयकर में कमीः चूंकि बैंकों में पैसों के साथ अधिक लोग हैं, कराधान के निचले बैंड को 10 प्रतिशत से कम कर 5 प्रतिशत किया जाना चाहिए। इसके अलावा, समग्र आयकर में भी कमी होने की आवश्यकता है। कर आधार बढ़ाने का उद्देश्य केवल आईटी विभाग का होना चाहिए बजाए उन्हीं लोगों पर अधिक कर लगाने के। आयकर को बहुत अधिक सरल होने की आवश्यकता है तथा ‘‘आश्रित” भत्ता प्रावधान शुरू किया जाना चाहिए क्योंकि लोगों तक आधार कार्ड संख्या के माध्यम से पहुंचा जा सकता है।

3.    जीएसटी कम करनाः वस्तु एवं सेवा कर को कुछ हद तक कम किया जाना चाहिए क्योंकि लोगों के खर्च करने की शक्ति पहले की तुलना में कम है। इसे बाद में बढ़ाया जा सकता है-परंतु चूंकि विमुद्रीकरण तथा जीएसटी कार्यान्वन काफी निकट रूप से कार्यान्वित हो रहा है, अवस्थानांतरण सुचारू रूप से किया जाना चाहिए।

4.    स्टाम्प शुल्क अधिनियम में परिवर्तन प्रारंभ किया जाना चाहिएः स्टाम्प शुल्क यह मानता है कि एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हस्तांतरित की गई संपत्ति में काला धन शामिल है। अब काले धन की संभावनाएं बहुत कम है इसलिए स्टाम्प शुल्क जंत्री दरों पर नहीं बल्कि अनुबंध दरों पर वसूला जाना चाहिए। इसके अलावा स्टाम्प शुल्क में भी कमी की जानी चाहिए। स्टाम्प शुल्क के पंजीकरण के लिए नकद अनिवार्य है- परंतु अब उन्हें यह चैक अथवा प्लास्टिक मनी द्वारा भी स्वीकार कर लेना चाहिए।

5.    अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में कारोबार करने में आसानी पर ध्यान केंद्रित होनाः नया व्यापार प्रारंभ करना व मौजूदा व्यापार चलाना किस प्रकार आसान किया जाए इस पर पूरे देश को ध्यान केंद्रित करना चाहिए। अब देश के सकल घरेलु उत्पाद में वृद्धि करने का एकमात्र समाधान प्रतियोगिता व अनुसंधान है।

6.    ब्याज दर में कमी व ऋण आसान बनानाः बैंकों ने पहले ही सावधि जमा दरों को कम करना शुरू कर दिया है परंतु ऋण दरें अब भी कम नहीं हैं। क्रेडिट को तुरंत उपलब्ध बनाने से भारतीय अर्थव्यवस्था को पहले से कहीं ज़्यादा तेज़ी से बढ़त प्राप्त होने में सहायता प्राप्त होगी। संपत्ति पर ऋण अब वास्तविक मूल्यांकन के आधार पर होना चाहिए बजाए कुल कीमत के सफेद भाग के।

7.    शिक्षा को उदार करनाः भारतीय शिक्षा प्रणाली अब भी पुरानी ही है। युवाओं को एक ही राह से रोज़गार प्राप्त हो सकता है और वह उनका शिक्षित होना है। आभूषण व अचल संपत्ति उद्योग बहुत से लोगों को, बगैर किसी शैक्षणिक योग्यता के रोजगार प्रदान किया करते थे। अब यह अतीत की बात है। निजी विद्यालय व महाविद्यालय को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए तथा विदेशी विश्वविद्यालयों को अनुमति दी जानी चाहिए।

8.    आवश्यकता आधारित उद्योगों में निवेशः निजी क्षेत्रों को उनके सफेद धन का निवेश ऐसे उद्योग में करना चाहिए जो आवश्यकता आधारित हो। विलासिता एवं विवेकाधीन खर्च सीमित हो जाएगा- इसलिए इन उद्योगों में निवेश ना करें।

9.    स्थानीय तौर पर उत्पादित स्मार्ट फोन पर उत्पाद शुल्क हटानाः एक स्मार्ट फोन द्वारा डिजिटल पैसा आसानी से सम्पादित किया जाता है। सरकार को स्थानीय स्तर पर उत्पादित स्मार्ट फोन से उत्पाद शुल्क पूरी तरह हटा देना चाहिए। इससे प्रैद्योगिकी का प्रसार बढे़गा एवं डिजीटल प्रबंधन करने की भारत की क्षमता को बढ़ावा मिलेगा।


Friday 4 November 2016

आर्थर लेफर ने 1974 में पाया कि यदि सरकार एक इष्टतम दर पर कर एकत्र करती है तो यह कर संग्रह को बढ़ा सकता है। तो यदि कर  की दर 0 प्रतिशत है तो कोई संग्रहण नहीं होगा व यदि कर  की दर 100 प्रतिशत है तो लोग कार्य करने के लिए प्रेरित नहीं होंगे। तो दोनों का संतुलन ऐसे ढ़ंग से बनाए रखना होगा कि व्यवसायों व निवेशकों के पास पुनः निवेश करने के लिए व अधिक अर्जित करने के लिए पैसे बचें हों।

भारत ने इंदिरा गांधी की सरकार के दौरान 90 प्रतिशत से अधिक जितना उच्च कराधान देखा है जिसके बाद 1991 के सुधार एक अधिक कर अनुकूल वातावरण की तरफ ले गए। हालांकि भारत के एक लोकतांत्रिक देश होने के नाते उसे वोट प्राप्त करना है।

यहां भारत की जीडीपी की तुलना हमारे आकार के अन्य देशों के साथ है। यदि आप प्रति व्यक्ति आय की तुलना में न्यूनतम कर स्लैब का अनुपात देखें तो हम महसूस करेंगे कि हमारे पास प्रति व्यक्ति आय से दुगना कमाने वालों के लिए सबसे उदार संरचनाओं में से एक है।


यदि आप बारीकी से अध्ययन करेंगे तो आप देखेंगे कि चीन के पास लड़ने के लिए कोई चुनाव नहीं है- इसलिये वे उनके प्रति व्यक्ति आय के 3.22 प्रतिशत जितना कमाने वालों से भी 3 प्रतिशत कर लागू करते हैं। इंडोनेशिया जैसा राष्ट्र जिसके पास भारत की प्रति व्यक्ति आय से दुगनी है उसकी कर दर कम हैं। यहां तक कि उसका अगला कर स्लैब 5 प्रतिशत है।

इसका अर्थ है कि अन्य सभी अधिक जनसंख्या वाले देश अधिक लोगों पर कम कर लागू करके कर आधार बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। तो उनकी प्रति व्यक्ति आय की तुलना में उनके कर स्लैब कम अंकों पर शुरू हो रहे हैं।

भारत को ऐसे उदाहरणों से सीखना चाहिये व 1,00,000 रूपये से 2,50,000 तक आय - जिसपर वर्तमान में 0 प्रतिशत कर लागू होता है, उनपर 1 प्रतिशत कर लागू करना चाहिये। इससे कर आधार बढ़ेगा व कोर्पोरेट स्तर पर भी अनुपालन में सुधार होगा। कहने की आवश्यकता नहीं है कि काली अर्थव्यवस्था कम होगी व उनके आय के प्रमाण के आधार पर लोगों को आसान ऋण भी मिल जाएगा।

भारत की अर्थव्यवस्था पर कर सुधारों का प्रभाव

कर सुधार आमतौर पर सरकार के वित्त पोषण के साथ जुड़े होते हैं। राजनीति में रूचि रखने वाले लोग कर सुधार को वोट बैंक के साथ जोड़ेंगे व आगामी चुनावों में सुधारों को बारीकी से देखेंगे। कर सुधारों को कभी कभी कर स्तर में संशोधन व कर दरों का सरलीकरण समझ लिया जाता है। हालांकि ये कर सुधार नहीं हैं। कर सुधार सरकार द्वारा कराधान के अभिनव तरीकें हैं जिसमें देश की समग्र अर्थव्यवस्था का विकास होता है और इस तरह अनुपालन की लागत कम हो जाने पर भी वह अधिक कर राजस्व प्राप्त करती है।

आज़ादी के 69 वर्षों में एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था ने सामाजिक आर्थिक परिदृश्य में कई बदलाव देखे हैं।

औपनिवेशिक शासन के बाद के दशकों के दौरान, भारत की अर्थव्यवस्था, प्रति व्यक्ति आय के संबंध में, मात्र 500 रूपये से 6200 तक विस्तरित हुई है देश के विदेशी मुद्र भंडार ने 365 अरब को पार कर लिया है, जिससे बाहरी झटकों से लड़ने के लिए अर्थव्यवस्था को शक्ति मिली है।


भले ही देश ने सडकों बंदरगाहों का निर्माण कर खद्यान्न उत्पादन बढ़ाने के द्वारा अर्थव्यवस्था को उच्च विकास पथ पर ले जाने के लिए बुनियादी ढांचे को बिछाने में प्रगति की हो, एक तेज़ी से बढ़ती हुई जनसंख्या और बुनियादी सुविधाओं का संकट कई क्षेत्रों में और अधिक काम करने की मांग करता है।

तो यदि आप ध्यान देंगे कि 1991 में मनमोहन सिंह द्वारा शुरू किए गए कर सुधारों के बाद हम 1500 रूपये प्रति व्यक्ति आय की 170 वर्ष की बाधा को महज 25 वर्षों में लगभग 7 गुना कर पाए।

कई लोगों का मानना है कि भारत की अर्थव्यवस्था में सुधार स्वतंत्रता की वजह से हुआ है। हालांकि स्वतंत्रता के बाद सभी अर्थव्यवस्थाएं इतनी अधिक सफल नहीं हुई हैं। अफ्रीका में जिन देशों को स्वतंत्रता प्राप्त हुई उन्होंने यूरोपवासियों के जाने के दशकों बाद तक जीडीपी में गिरावट देखी है। यह इस तथ्य के कारण अधिक था कि विदेशी शासनों ने गुलाम देशों के बुनियादी ढांचे को सुधारने के लिए ना के बराबर काम किया था और इसलिए वे विकसित नहीं हो पाए। दूसरी तरफ भारत की एक स्थिर अर्थव्यवस्था थी उसने पिछले 3 दशकों में अर्थव्यवस्था के लगभग सभी पहलुओं में अभूतपूर्व वृद्धि देखी है।

कर सुधार आमतौर पर व्यापार की कठिनाइयों को कम करने के लिये किए जाते हैं। इस तरह अधिक व्यापारिक उद्यमों का गठन होता है व अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है। उदाहरण के लिए साझेदार फर्मों पर दोहरे कराधान को समाप्त करना। इसने कई सारे लघु उद्यमों को पनपने में सक्षम किया व लोगों ने इमानदारी से आय की रिपोर्ट करना शुरू कर दिया।

पूर्व में साझेदार फर्मों पर दोहरे कराधान के कारण कर की चोरी बहुत अधिक होती थी व लोग साझेदारी में प्रवेश करने से बचने थे जिससे अर्थव्यवस्था पर चोट पहुंचती थी। हमने स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए बहुत संघर्ष किया- मुझे लगता है कि यदि हम भारत को एक धनी देश बनाना चाहते हैं तो अधिक से अधिक कर सुधार प्राप्त करने के लिए हमें और अधिक संघर्ष करना चाहिये। 

क्या नकद की अनुपस्थिति अपराध को कम करती है?

बैंक डकैती, जुआ, तस्करी, भ्रष्टाचार, वेश्यावृत्ति, नशीले पदार्थों की बिक्री, नकली मुद्रा और कर चोरी में क्या समानता है? ये सभी नकदी पर निर्भर हैं। ये वे अपराध हैं जो अर्थव्यवस्था में नकद की उपस्थिति पर अत्यधिक निर्भर हैं। तो इस समस्या के दो पहलू हैं। पहला यह कि ऐसे सौदों में बहुत सारी नकदी होती है व नकद एक विशेष मूल्यवर्ग का होना चाहिये।

हाल ही में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्र बाबू नायडू ने कहा कि अर्थव्यवस्था में काले धन को कम करने के लिए 1000 रूपये व 500 रूपये के नोटों को समाप्त कर दिया जाना चाहिये और करोड़ों रूपये की राशि का 100 रूपये के नोट में होना असुविधाजनक हो जाएगा। एक व्यक्ति जो 5 लाख रूपयों से भरा हुआ भारी बैग लेकर सरकारी अफसर से मिलने जा रहा है, उसपर सीसीटीवी में भी नज़र पड़ सकती है क्योंकि वैसा ही व्यक्ति अफसर के कैबिन से हल्का बैग लेकर बाहर निकलता हुआ दिखेगा। यह छोटे भ्रष्टाचार के संबंध में एक अच्छा विचार है- बड़े पैमाने के भ्रष्टाचार फिर भी होंगे ही क्योंकि अपतटीय बैंक खाते जारी रहेंगे। हालांकि यदि हम अपराध को कम करना चाहते हैं तो हमें नकद लेनदेन पर अपनी निर्भरता को कम करना होगा। छोटी डकैतियां व अवैध कारोबार नकदी पर अत्यधिक निर्भर करती है। कल्पना कीजिए कि एक व्यक्ति ड्रग्स खरीदने के लिए एक बड़ा बैग ले जा रहा है। उसपर नज़र ना पड़ना असंभव है।

तो मुद्राचलन में नोटों के मूल्यवर्ग को कम करने के अलावा इलेक्ट्रॉनिक लेनदेन का प्रचार करने की आवश्यकता है। यहीं पर जन धन योजना उपयोगी सिद्ध होगी। चूंकी भारत की अधिकांश जनसंख्या को बैंक अकाउंट की पहुंच प्राप्त होगी, बैंक लेनदेन करना अब सरल होगा। तो सरकार एक नीयम बना सकती है कि यदि आपको न्यूनतम वेतन से अधिक किसी भी वेतन के लिए आयकर में कटौती चाहिये-उसका भुगतान बैंक अकाउंट द्वारा किया जाना होगा।

क्रेडिट कार्ड व डेबिट कार्ड के उपयोग का प्रचार किया जाना चाहिये। प्रत्येक लेनदेन की कीमत 2.5 प्रतिशत जितनी उच्च है और उसे किसी भी तरह से नीचे लाया जाना चाहिये। क्रेडिट कार्ड/ डेबिट कार्ड इन दिनों चिप, ओटीपी व एसएमएस अधिसूचना जैसी सुविधाओं के साथ बहुत सुरक्षित है।

यूपीआई की शुरूआत-अगस्त 2016 में रिज़र्व बैंक द्वारा एकीकृत भुगतान इंटरफेस ने कई सारी संभावनाओं को खोल दिया है। मान लीजिए कि आप खरीदारी करने बाहर गए हैं- आपको नकद या कार्ड या चैक बुक की आवश्यकता नहीं है। आप एक टीवी खरीदने का निर्णय लेते हैं- आपके पास आपका मोबाइल फोन व आपका पासवर्ड है। आपको प्राप्तकर्ता की यूपीआई आईडी दर्ज करनी है जिन्हें आपको पैसों का भुगतान करना है व तुरंत पैसे स्थानांतरित कर दीजिए।

15 बैंक अपने एंड्रॉयड एैप्स को यूपीआई के साथ जोड़ चुके हैं। आप यूपीआई के द्वारा पैसे भेज व प्राप्त कर सकते हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि आप कुछ ही क्षणों के भीतर अंतर बैंक लेनदेन कर सकते हैं। लेनदेन का कोई शुल्क नहीं है व याद रखने के लिए कोई अतिरिक्त पासवर्ड भी नहीं है- फिर भी यह पूर्णतः सुरक्षित है। यहां तक कि तीन स्तरीय सुरक्षा है - मान लीजिये कि आपके माबाईल फोन में फिंगर प्रिंट सुरक्षा है, फिर आपके एैप में 4 अंकों का पिन होगा व अंत में यूपीआई के लिए आपको आपके डेबिट कार्ड के पीछे लिखा हुआ नंबर लिखने की आवश्यकता होगी। तो ज्ञान के बगैर पैसे चुराना असंभव है।

यह जो बैंकिंग मार्ग बनाता है उसके कारण-अवैध लेनेदेन में इलेक्ट्रानिक धन का बहुत कम प्रयोग किया जाता है। सरकार को ऐसे लेनदेन का प्रचार स्वीडन की तरह करना चाहिये। उस देश ने ऐसे ही ‘‘स्वीश” नाम का मोबाइल आधारित भुगतान शुरू किया है व नकद पर उसकी निर्भरता को कम किया है।


आज़ादी के 69 वर्षों में एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था ने सामाजिक आर्थिक परिदृश्य में कई बदलाव देखे हैं।

औपनिवेशिक शासन के बाद के दशकों के दौरान, भारत की अर्थव्यवस्था, प्रति व्यक्ति आय के संबंध में, मात्र 500 रूपये से 6200 तक विस्तरित हुई है देश के विदेशी मुद्र भंडार ने 365 अरब को पार कर लिया है, जिससे बाहरी झटकों से लड़ने के लिए अर्थव्यवस्था को शक्ति मिली है।



भले ही देश ने सडकों बंदरगाहों का निर्माण कर खद्यान्न उत्पादन बढ़ाने के द्वारा अर्थव्यवस्था को उच्च विकास पथ पर ले जाने के लिए बुनियादी ढांचे को बिछाने में प्रगति की हो, एक तेज़ी से बढ़ती हुई जनसंख्या और बुनियादी सुविधाओं का संकट कई क्षेत्रों में और अधिक काम करने की मांग करता है।

यहां आज़ादी से लेकर अब तक देश की अर्थव्यवस्था के प्रमुख वृहद संकेतकों का एक दृश्य हैः

जीडीपी
7$ की दर से बढ़ती हुई भारत की जीडीपी, वर्तमान में सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। हाल ही में सुधारों की वजह से विकास हुआ है हालांकि स्वतंत्रता के बाद अर्थव्यवस्था को विकसित करने के बीज बोए गए थे।



जीडीपी के प्रतिशत के रूप में सकल घरेलू बचत

भारतीयों की सकल घरेलू बचत, जीडीपी के एक प्रतिशत के रूप में, वित्तीय वर्ष 2008 में जीडीपी के 36.8 प्रतिशत को छूने के लिए कई दशकों से बढ़ी है, परंतु उसके बाद यह अनुपात तेज़ी से गिरा है वित्त वर्ष 2013 में 30 प्रतिशत तक गिरावट आई है, इसने निर्माताओं के लिए चिंता पैदा की है।


विदेशी मुद्रा भंडार

देश का विदेशी मुद्रा भंडार स्वतंत्रता के समय से मात्र 2 बिलियन डालर से 365 बिलियन डॉलर तक बढ़ा है। मज़बूत विदेशी मुद्रा भंडार ने अर्थव्यवस्था को बाहरी झटके झेलने के लिए और अधिक ताकत दे दी है। जनवरी 1991 में, भारत को अंर्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष के लिए 67 टन सोना गिरवी रखना पड़ा था जब देश का विदेशी मुद्रा भंडार 1.2 बिलीयन मात्र तक गिर गया था, जो केवल तीन सप्ताहों के अनिवार्य आयातों को वित्तपोषित करने के लिए पर्याप्त था।












हालांकि स्वतंत्रता के बाद सभी अर्थव्यवस्थाएं इतनी अधिक सफल नहीं हुई हैं। अफ्रीका में जिन देशों को स्वतंत्रता प्राप्त हुई उन्होंने यूरोपवासियों के जाने के दशकों बाद तक जीडीपी में गिरावट देखी है। यह इस तथ्य के कारण अधिक था कि विदेशी शासनों ने गुलाम देशों के बुनियादी ढांचे को सुधारने के लिए ना के बराबर काम किया था और इसलिए वे विकसित नहीं हो पाए। दूसरी तरफ भारत की एक स्थिर अर्थव्यवस्था थी उसने पिछले 3 दशकों में अर्थव्यवस्था के लगभग सभी पहलुओं में अभूतपूर्व वृद्धि देखी है।