Friday 4 November 2016

भारत की अर्थव्यवस्था पर कर सुधारों का प्रभाव

कर सुधार आमतौर पर सरकार के वित्त पोषण के साथ जुड़े होते हैं। राजनीति में रूचि रखने वाले लोग कर सुधार को वोट बैंक के साथ जोड़ेंगे व आगामी चुनावों में सुधारों को बारीकी से देखेंगे। कर सुधारों को कभी कभी कर स्तर में संशोधन व कर दरों का सरलीकरण समझ लिया जाता है। हालांकि ये कर सुधार नहीं हैं। कर सुधार सरकार द्वारा कराधान के अभिनव तरीकें हैं जिसमें देश की समग्र अर्थव्यवस्था का विकास होता है और इस तरह अनुपालन की लागत कम हो जाने पर भी वह अधिक कर राजस्व प्राप्त करती है।

आज़ादी के 69 वर्षों में एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था ने सामाजिक आर्थिक परिदृश्य में कई बदलाव देखे हैं।

औपनिवेशिक शासन के बाद के दशकों के दौरान, भारत की अर्थव्यवस्था, प्रति व्यक्ति आय के संबंध में, मात्र 500 रूपये से 6200 तक विस्तरित हुई है देश के विदेशी मुद्र भंडार ने 365 अरब को पार कर लिया है, जिससे बाहरी झटकों से लड़ने के लिए अर्थव्यवस्था को शक्ति मिली है।


भले ही देश ने सडकों बंदरगाहों का निर्माण कर खद्यान्न उत्पादन बढ़ाने के द्वारा अर्थव्यवस्था को उच्च विकास पथ पर ले जाने के लिए बुनियादी ढांचे को बिछाने में प्रगति की हो, एक तेज़ी से बढ़ती हुई जनसंख्या और बुनियादी सुविधाओं का संकट कई क्षेत्रों में और अधिक काम करने की मांग करता है।

तो यदि आप ध्यान देंगे कि 1991 में मनमोहन सिंह द्वारा शुरू किए गए कर सुधारों के बाद हम 1500 रूपये प्रति व्यक्ति आय की 170 वर्ष की बाधा को महज 25 वर्षों में लगभग 7 गुना कर पाए।

कई लोगों का मानना है कि भारत की अर्थव्यवस्था में सुधार स्वतंत्रता की वजह से हुआ है। हालांकि स्वतंत्रता के बाद सभी अर्थव्यवस्थाएं इतनी अधिक सफल नहीं हुई हैं। अफ्रीका में जिन देशों को स्वतंत्रता प्राप्त हुई उन्होंने यूरोपवासियों के जाने के दशकों बाद तक जीडीपी में गिरावट देखी है। यह इस तथ्य के कारण अधिक था कि विदेशी शासनों ने गुलाम देशों के बुनियादी ढांचे को सुधारने के लिए ना के बराबर काम किया था और इसलिए वे विकसित नहीं हो पाए। दूसरी तरफ भारत की एक स्थिर अर्थव्यवस्था थी उसने पिछले 3 दशकों में अर्थव्यवस्था के लगभग सभी पहलुओं में अभूतपूर्व वृद्धि देखी है।

कर सुधार आमतौर पर व्यापार की कठिनाइयों को कम करने के लिये किए जाते हैं। इस तरह अधिक व्यापारिक उद्यमों का गठन होता है व अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है। उदाहरण के लिए साझेदार फर्मों पर दोहरे कराधान को समाप्त करना। इसने कई सारे लघु उद्यमों को पनपने में सक्षम किया व लोगों ने इमानदारी से आय की रिपोर्ट करना शुरू कर दिया।

पूर्व में साझेदार फर्मों पर दोहरे कराधान के कारण कर की चोरी बहुत अधिक होती थी व लोग साझेदारी में प्रवेश करने से बचने थे जिससे अर्थव्यवस्था पर चोट पहुंचती थी। हमने स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए बहुत संघर्ष किया- मुझे लगता है कि यदि हम भारत को एक धनी देश बनाना चाहते हैं तो अधिक से अधिक कर सुधार प्राप्त करने के लिए हमें और अधिक संघर्ष करना चाहिये। 

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