Friday 4 November 2016

1 प्रतिशत आयकर पूरे देश को बदल सकता है

भारत में उच्च कराधान उच्च चोरी का एक लंबा इतिहास रहा है। आज जो हम देख रहे हैं वह असफल प्रयोगों कीमत अवधारणा के कई वर्षों के बाद परिपक्व आयकर विनियमन है। हालांकि मौजूदा प्रत्यक्ष कराधान प्रणाली की सबसे बड़ी विफलता कर आधार है। वास्तविक करदाताओं की संख्या भारत की जनसंख्या की केवल 3 प्रतिशत है। साथ ही निरंतर बढ़ती हुई जीडीपी के बाद भी हम अपने राजकोषीय घाटे को कम करने में सक्षम नहीं हुए हैं। सरकार चाहती है कि आम जनता अधिक कमाए ताकि उन्हें वोट मिल सकें, हालांकि ये आम लोग आयकर के दायरे में नहीं आते हैं। कर आधार के इतना छोटा होने के कई कारण हैं। एक महत्त्वपूर्ण समस्या जिसपर लगातार वित मंत्रियों द्वारा विचार नहीं किया गया है वह है कि भारतीयों की औसत आय बहुत कम है। हमारी प्रति व्यक्ति जीडीपी 6,200 रूपये से कम है जबकि हमारा कर स्तर 2.5 लाख से शुरू होता है। तो स्वाभाविक रूप से भारत का 97 प्रतिशत आयकर के दायरे में नहीं है।

हम आयकर की धारणा बदल कर सब कुछ बदल सकते हैं। हमें ‘‘सूक्ष्म कराधान”  की आवश्यकता है। पेशेवर कर की अवधारणा की तरह- स्थानीय निकायों द्वारा एकत्रित- एक बहुत ही सरल निश्चित दर है। आयकर भी एक समान तरीके से किया जा सकता है जहां वेतन से एक निश्चित नाममात्र राशि की कटौती की जाती है। हालांकि जहां देश आर्थिक लाभ देखेगा वहीं सरकारी खजाना नहीं देखेगा।

वैकल्पिक रूप से, एक लाख से 2.5 लाख तक की आय के लिए अन्य खंड हो सकता है। कर की दर 1 प्रतिशत होनी चाहिये। इसलिए कर अनुपालन की लागत इतनी कम होगी की बहुत बड़े अर्थ दंड से दंडित होने की बजाए लोग कर का भुगतान करेंगे। तो यह मानते हुए कि यदि 20 करोड़ लोग सालाना 1000 रूपये आयकर का भुगतान करते हैं तो यह सरकार को 20,000 करोड़ रूपये देगा। जाहिर है कि यह केवल लगभग 5 प्रतिशत से हमारे राजकोषीय घाटे को कम करेगा परंतु कर का भुगतान करने की अवधारणा का व्यापक प्रसार होगा जब उनकी आय में वृद्धि होगी तो कर राजस्व में भी तत्काल वृद्धि होगी।

लोगों को अपनी आय दर्ज करने कर का भुगतान करने के कई लाभ हैं। सबसे पहला सबसे बड़ा एक ऋण प्राप्त करना है। एक प्रतिशत कर के साथ लोग आसानी से सस्ते ऋण प्राप्त करने के व्यापक लाभ को कर लेने वाले के उत्पीड़न के रूप के बजाय आयकर का भुगतान करने के एक बड़े लाभ के रूप में देखेंगे।

सूक्ष्म कर की मदद से सूक्ष्म क्रेडिट भारत को गरीबी से बाहर आने में सहायता दे सकता है। पिछले सप्ताह हमने चर्चा की कि किस प्रकार भारत अपने राजस्व और कर आधार बढ़ाने के लिए गरीबी रेखा से उपर परंतु कर योग्य सीमा के भीतर के लोगों पर कर लागू कर सकता है। प्रत्यक्ष कर संग्रह में संभावित 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है। परंतु प्रश्न यह है कि आयकर का भुगतान करने में एक आम आदमी रूचि क्यों लेगा? हम बुनियादी अर्थशास्त्र की ओर वापस जाते हैं। गरीबी एक महान अभिशाप है। यह आर्थिक विकास के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है। 1966 में अपनी पुस्तक ‘‘अविकसित देशों में पूंजीनिर्माण की समस्याएंमें रेंजर नर्क्स ‘‘गरीबी के दुष्चक्र को गरीब देशों के अविकसित होने के बुनियादी कारणों में एक के रूप में वर्णन करते हैं उनके अनुसार एक देश गरीब होता है क्योंकि वह गरीब होता है। गरीब होने के नाते, एक देश में बचत के लिए बहुत कम क्षमता या प्रोत्साहन होता है। बचत की कमी निवेश के निम्न स्तर पूंजी की कमी की ओर ले जाती है। पूंजी की कमी उत्पादकता के निम्न स्तर की ओर ले जाती है। जब प्रति व्यक्ति उत्पादकता कम होती है, जाहिर है कि वास्तविक आय कम ही होगी और इसलिये गरीबी दुष्चक्र पूरा हो जाएगा।

इस चक्र को तोड़ने के लिए हमें क्रेडिट की आवश्यकता है। वे परिवार जिनकी वार्षिक आय 1 लाख से 4 लाख तक है, उन्हें बहुत से वित्त की आवश्यकता है। इस वित्त की व्यवस्था उच्च ब्याज ऋण से की जाती है क्योंकि औपचारिक बैंकिंग श्रृंखलाएं उन्हें ऋण देने का जोखिम नहीं उठाना चाहतीं। बल्कि वर्तमान एनपीए का सुझाव है कि कंपनियों को ऋण देना भी उतना ही जोखिम भरा है, हालांकि यह एक अलग विषय है।

उदाहरण के लिए एक परिवार को वॉशिंग मशीन की आवश्यकता है ताकि पत्नी समय बचा सके काम पर जा सके। हालांकि जब तक वह काम पर नहीं जाती उनके पास वॉशिंग मशीन खरीदने के लिए बचत नहीं है। यदि एक बैंक ऋण उन्हें प्रारंभिक रूकावट से उबरने में सहायता दे सकता है तो वे तेज़ी से कमाना शुरू कर सकते हैं। यह अवधारणा है कि सूक्ष्म ऋण महंगा है क्योंकि चुकौती लागू करने योग्य नहीं है। इसे एक ‘‘क्रेडिट कोर”  के निर्माण से समाप्त किया जा सकता है। एक क्रेडिट स्कोर का निर्माण करने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ एक आय प्रमाण प्रस्तुत करना है। ताकि इस प्रकार ‘‘सूक्ष्म कर”  वापसी ‘‘सूक्ष्म क्रेडिट”  प्राप्त करने में सहायता कर सके।

प्रधानमंत्री को स्वयं क्रेडिट स्कोर पर भारतीय अर्थव्यवस्था के निर्माण के इस विचार का विपणन करना चाहिये। क्रेडिट स्कोर की अवधारणा लोगों को ऋण दिलाने में उन्हें गरीबी के दुष्चक्र से वास्तव में बाहर निकलने में मदद करेगी। एक अच्छा क्रेडिट स्कोर प्राप्त करने के लिए 1 प्रतिशत का आयकर रिटर्न पर्याप्त नहीं है। उन्हें बैंक विवरण दिखाने की आवश्यकता है यह साबित करने के लिए कि उनके पास आय का सबूत है। यह जन धन खातों को बढ़ावा देगा बैंकों को वह धन देगा जिसकी आवश्यकता उन्हें बैंक ऋण का वित्तपोषण करने के लिए है। इस प्रकार भारत स्वयं को गरीबी के दुष्चक्र से बाहर निकाल सकता है वर्ष दर वर्ष दो अंकों में जीडीपी विकास प्राप्त कर सकता है।


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