Friday 4 November 2016

युद्ध की लागत

उड़ी पर हाल ही के एक हमले प्रत्युत्तर में ‘‘सर्जिकल स्ट्राइक”  ने लोगों को भारत पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसी स्थिति के बारे में सोचने के लिए मजबूर किया है। आतंकवादी हमलों से पूरी तरह से इनकार किया जा सकता है पाकिस्तान बड़ी आसानी से कह सकता है कि ऐसे आतंकवादी हमले में उनकी कोई भूमिका नहीं है। हालांकि एकमुश्त युद्ध अलग है। इसमें बहुत अधिक संख्या में जीवन दांव पर है बहुत सारी राजनीति शामिल है।

आर्थिक संसाधनों के लिए युद्ध लड़े गए हैं-जैसे कि तेल, सोना, तार्किक विश्वास अथवा अन्य राष्ट्र से खतरा। हालांकि भारत या पाकिस्तान के संबंध में यह सामान्य कारण नहीं है। खैर कश्मीर पर नियंत्रण एक कारण हो सकता है हालांकि कश्मीर में तेल अथवा ऐसे अन्य प्राकृतिक संसाधन नहीं हैं जो युद्ध की आर्थिक लागत का औचित्य साबित कर सके। इन देशों के मध्य धर्म को लेकर युद्ध नहीं हो सकता क्योंकि भारत विश्व में मुसलमानों की सबसे बड़ी आबादी में से एक है। भारत मुस्लिमों के विरूद्ध नहीं है अन्यथा उसे बांग्लादेश से भी लड़ना होता।

 यहां तक की दोनों देशों के मध्य के छोटे मोटे झगड़े इतनी दूर तक खींचे गए हैं कि यह बगैर किसी वजह के युद्ध का कारण बन सकते हैं। क्या बगैर किसी कारण के युद्ध जायज़ है? कुछ ही दिनों के भीतर लाखों जीवन अरबों रूपये खो देना क्या एक अच्छा निर्णय हो सकता है?

हम इस पर विस्तार से नज़र डालते हैं - युद्ध की वास्तविक लागत क्या होती है?

कारगिल युद्ध के समय तत्कालीन वित मंत्री यशवंत सिन्हा ने यशस्वी तौर पर कहा था कि एक युद्ध का कोई आर्थिक प्रभाव नहीं पड़ेगा या जब वरिष्ठ अधिकारी दावा करते हैं कि इसकी कोई कीमत नहीं चुकानी पड़ेगी क्योंकि हथियार गोला बारूद के भंडार पहले ही जमा किए जा चुके हैं तो यह सच्चाई से बहुत दूर है। हालांकि जब हम केवल अपने क्षेत्र का बचाव कर रहे थे तब भी हमें लगभग 10,000 करोड़ रूपये की कीमत चुकानी पड़ी थी, यदि हम रूढ़िवादी अनुमान के अनुसार जाएं।

यह अनुमानित है कि आज उसी युद्ध की कीमत 10 गुना अधिक होगी। इसमें युद्ध के कारण अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसानों को नहीं गिना गया है। शेयर बाज़ार अचानक गिर जाता है, व्यवसायी आत्मविश्वास खो देते हैं विदेशी निवेशक निवेश करने में परिवर्तन कर देते हैं। जीडीपी विकास दर 7 प्रतिशत के लक्ष्य की तुलना में 3 प्रतिशत से कम हो जाएगी।

परंतु अन्य प्रश्न का पूछा जाना आवश्यक है कि युद्ध ना करने की कीमत क्या है?

भारत रक्षा पर सालाना 40 अरब डॉलर खर्च करता है। एक ही देश जिससे हम भयभीत हैं वह है पाकिस्तान। यह राशि कोई छोटी राशि नहीं है क्योंकि यह आवर्तक है वर्ष दर वर्ष बढ़ती ही जा रही है। जीडीपी के प्रतिशत के रूप में यह 2.4 है जबकि पाकिस्तान 7.5 अरब डॉलर खर्च करता है जो कि जीडीपी का 3.6 प्रतिशत है।

ये देश विश्व के सबसे कम प्रति व्यक्ति आय वाले देशों में हैं सामाजिक कल्याण पर पैसा खर्च करने की बजाय ये रक्षा पर खर्च कर रहे हैं। प्रतिवर्ष इनका रक्षा खर्च लगभग 11 प्रतिशत बढ़ता है उनकी जीडीपी एक बहुत कम दर पर बढ़ती है। संकट का बढ़ा हुआ बोध देश में समग्र सुरक्षा का खर्च बढ़ा देता है और इसलिए पड़ोसी के साथ तनाव होने की लागत अकेले रक्षा बजट तक सीमित नहीं है।

एक निर्णायक युद्ध जो दोनों देशों के रक्षा बजट को नीचे लाएगा, एक युद्ध लड़ने की आर्थिक समझ़ के लिए दूरदराज का एक औचित्य है। हालांकि पिछले भारत पाकिस्तान के बीच के सभी युद्धों में पाकिस्तान ऐसा रहा है जिसके अहंकार ने चोट खायी है, केवल बाद में पुनः उभरने के लिए।

एक और समाधान है जो इन देशों को अंतहीन सैन्य खर्च से बाहर आने में सहायता दे सकता है-उस पर अगले सप्ताह नज़र डालते हैं।

भारत पाकिस्तान के बीच का युद्ध दोनों देशों में कई लोगों के लिए दिवास्वप्न रहा है। कुछ के लिये युद्ध में स्वार्थ नीहित है अन्य में पड़ोसी राष्ट्र के विरूद्ध गुस्सा भरा हुआ है। जैसा कि हमने पिछले सप्ताह देखा कि युद्ध की लागत एक ऐसी वस्तु है जिसकी गणना हम तब तक नहीं कर सकते जब तक युद्ध समाप्त नहीं हो जाता। हम जीवन की हानि भी नहीं जानते हैं किस प्रकार वह दोनों देशों में जीडीपी को प्रभावित करेगी।

वह देश जो युद्ध का कारण बनेगा उसे युद्ध के समाप्त हो जाने के बाद लंबे समय तक अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों का सामना करना होगा। विश्व शक्तियां शायद युद्ध से दूर रहेंगी भारत एवं पाकिस्तान को जल्द से जल्द युद्ध समाप्त करने पर मजबूर करेंगी। जो भी देश इसमें सहमत नहीं होगा उसे किये का परिणाम भुगतना होगा।

दोनों देशों में रक्षा की लागत बहुत बड़ी है स्थिति को हल करने के लिए एक निर्णायक युद्ध की भी। तो हम यह सुनिश्चित करने के लिए क्या कर सकते हैं कि दोनों देशों की अर्थव्यवस्था का विकास हो?

कोस्टा रिका उन कई देशों में से एक है जिनके पास 1948 से अब तक कोई सेना नहीं है। यह लगभग उसी समय की बात है जब भारत पाकिस्तान को स्वतंत्रता प्राप्त हुई। यह देश बहुत छोटा है और गृह युद्ध

कोस्टा रिका की प्रति व्यक्ति आय 1960 में 380 डॉलर थी जबकि भारत पाकिस्तान में प्रति व्यक्ति आय 83 डॉलर थी। हालांकि 2015 में, कोस्टा रिका में प्रति व्यक्ति आय बढ़ कर 10,600 डॉलर हो गई जबकि भारत 1580 डॉलर पाकिस्तान 1430 डॉलर पर है। जहां कोस्टा रिका की प्रति व्यक्ति आय 27 गुना बढ़ी वहीं भारत पाकिस्तान की 1.9 गुना 1.7 गुना बढ़ी। भारत रक्षा पर जीडीपी के प्रतिशत के रूप में पाकिस्तान से कम खर्च करता है इसलिये हमने एक सीमांत उच्च वृद्धि देखी है।

बगैर स्थायी सेना के, केवल सीमित सैन्य बलों वाले देश

  1. हैती
  2.   आइसलैंड
  3.   जापान
  4.   मॉरीशस
  5.   मोनाको
  6.   पनामा
  7.   वानुअतु 

ऐसे कई देश हैं जिनमें सेना नहीं है। भारत पाकिस्तान को एक साथ सेना को भंग कर देना चाहिये केवल सीमा सुरक्षा बल रखना चाहिये। दोनों देशों को अपनी अपनी अर्थव्यवस्था में सुधार लाने के लिए उस बचत का उपयोग करना चाहिये।

यह सर्वविदित तथ्य है कि अपने सक्षस्त्र बलों पर पाकिस्तान का नियंत्रण नहीं है ऐसा भी माना जाता है कि निहित स्वार्थ दोनों देशों में बीच शांति को प्रबल नहीं होने देते। मान लीजिए की पाकिस्तान में कोई सेना नहीं है? क्यों नहीं इसे कोस्टा रिका की ही तरह भारत की सेना के साथ भंग किया जा सकता? रक्षा बजट हमारे राजकोषीय घाटे का लगभग दोगुना है और यदि भारत सेनाभंग कर देता है तो हमें जीडीपी के कम से कम 1.5 प्रतिशत के बराबर अधिशेष प्राप्त होगा भारत उस अधिशेष को गरीबों के उत्थान के लिए निवेश करने में ध्यान केंद्रित कर सकता है।


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