Friday 4 November 2016

आयकर के लिए- नए वर्ष का अर्थ नई कर निर्धारिती

किसी भी लंबी अवधि के वाणिज्यिक संबंधों के लिए ‘‘खाते” की अवधारणा है। तो यदि आप अपने “धोबी” को कपड़े दे रहे हैं, तो वह उसकी डायरी में लिखेगा व एक महीने के बाद “हिसाब” करेगा, आप उसे ऋण दे सकते हैं क्योंकि उसका उल्लेख डायरी में किया जाएगा। यदि आप सतर्क होना चाहते हैं तो आप एक अन्य डायरी बना सकते हैं ताकि यदि वह उसकी डायरी से छेड़खानी करे तो आपके पास सबूत हो। यदि आप हर महीने निश्चित से कम या अधिक भुगतान करते हैं तो वह बस उसे आगे बढ़ा देगा। मैं अपने कपड़ों को इसी तरीके से इस्त्री होते हुए देखकर बड़ा हुआ हूँ और मुझे यकीन है कि भारत के 90 प्रतिशत धोबी इसी तरह काम करते हैं और इसी तरह लंबी अवधि के वाणिज्यिक संबंध भी। हालांकि भारत में आयकर इतना सरल नहीं है। सबसे पहले आपको स्वयं अनुमान लगाना होता है कि एक वित्तीय वर्ष में आप कितनी आय अर्जित करने वाले हैं व तदानुसार आपकी कुल आयकर देनदारी की गणना करनी होती है। दूसरा, उस वित्तीय वर्ष में आपको लगभग चार बराबर त्रैमासिक किश्तों में अग्रिम कर का भुगतान करना होता है। तीसरा, यदि आप आपके दायित्व के 90 प्रतिशत से कम का भुगतान करते हैं तो आपको वार्षिक आयकर रिटर्न के साथ शेष राशि पर ब्याज देना होगा। इसलिए यदि आयकर की पहली तिमाही के भुगतान के बाद किसी भी समय आपको आपके व्यवसाय में अप्रत्याशित मुनाफा हो जाता है तो उसे 12 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज का भुगतान करना होगा। कोई भी व्यापारी इस ब्याज का भुगतान कर अप्रसन्न नहीं होगा व अप्रत्याशित लाभ एक अच्छी वस्तु है। यह सब समझने योग्य है। कई बार व्यवसायों में अप्रत्याशित हानि हो जाती है। भारत का कारोबारी माहौल इतना अप्रत्याशित होने के कारण अप्रत्याशित हानि की संख्या अप्रत्याशित लाभ से अधिक है! यदि किसी मालिक के पास फरवरी के महीनें में एक बड़ी डूबी हुई रकम है तो उसके पूरे वर्ष का मुनाफा कमज़ोर हो जाता है। कम मार्जिनों के साथ ऐसा होने की काफी संभावना होती है कि एक ग्राहक की बकाया राशि में पूरे वर्ष का लाभ बंद होता है। नीयमों के अनुसार ऐसा है कि व्यापारी ने जनवरी के पहले ही उसके आयकर दायित्व का 75 प्रतिशत चुका दिया होता है। इस अप्रत्याशित हानि के कारण अब उसका कोई आयकर दायित्व नहीं है। तो यह अग्रिम रूप से चुकाया गया कर आयकर विभाग द्वारा 6 प्रतिशत ब्याज प्रतिवर्ष के साथ वापस किया जाएगा।

अब वह भाग आता है जो वास्तव में मुझे चिंतित करता है। ठीक एक वर्ष बाद फरवरी के महीने में, अचानक व्यापारी को पता चलता है कि वही ग्राहक जिसे पिछले वर्ष डूबी हई राशि माना जाता था अब पूरी बकाया राशि चुकाने के लिए सहमत हो गया है। इससे एक अप्रत्याशित आय होगी व अब तक अग्रिम रूप से चुकाये गये कर में न्यूनता आएगी व दंडात्मक ब्याज लगाया जाएगा।

मुझे आश्चर्य होता है कि कर निर्धारण के विकल्प के रूप में पिछले वर्ष चुकाये गये ऋण को भविष्य के वर्षों के लिए आगे ले जाने के लिए आयकर नीयम संशोधित क्यों नहीं किया जा सकता। यह रीफंड (पुनः वापसी), रीफंड पर ब्याज व वर्ष दर वर्ष सटीक आयकर दायित्व की गणना की कई सारी परेशानियों से बचाएगा। साथ ही, ब्याज दर एक ही होनी चाहिये चाहे आयकर का भुगतान किया जाना हो अथवा निर्धारित कर का भुगतान करना हो। आयकर को बैंक की तरह पैसे नहीं बनाने चाहिये! तो इन सरल संशोधनों के साथ मुझे यकीन है कि दंडात्मक ब्याज से बचने के लिए लोग थोड़ा सा अधिक ब्याज चुकाने में अधिक सहज महसूस करेंगे। 

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