Thursday 22 September 2016

आयकर का दायरा व्यापक व मजबूत हो रहा है

पिछले सप्ताह हमने लोगों को रिटर्न दाखिल करने के लिए प्राप्त हो रहे कर समन के विषय में बात की। सरकार की प्रत्यक्ष कर की रणनीति यह है कि अपनी आय का एक नाममात्र भाग का कर के रूप में भुगतान करने वाले लोगों की संख्या अधिक होनी चाहिए। कर का भुगतान करने वाले 5 करोड़ निर्धारितियों में से, रिटर्न दाखिल करने वाले लोगों की कुल संख्या केवल 3 करोड़ है, 125 करोड़ की जनसंख्या में से- लगभग 2.5 प्रतिशत। इससे भी अधिक चिंताजनक तथ्य यह है कि उनमें से 1.6 लोग शून्य कर का भुगतान करते हैं! यदि आपने पिछले वर्ष कर का भुगतान किया है व रिटर्न दाखिल किया है तो आप भारत की जनसंख्या के उस 1.12 प्रतिशत का भाग है जो वास्तव में राष्ट्र का निर्माण कर रहा है।

इस अनिश्चित स्थिति को सुधारने के लिए, सरकार ने बैंक, संपत्ति के उप पंजीयकों, आटोमोबाईल कंपनियों आदि को उनके ग्राहक के पैन विवरण के साथ उनकी बिक्री रिपोर्ट करने के लिए उनके द्वारा वार्षिक रिटर्न सूचना दाखिल करना अनिवार्य करने का निर्णय लिया। तो, यदि आपको नोटिस प्राप्त हुआ है, तो आपके पैन के सामने उच्च मूल्य के लेनदेन को दर्ज किया गया होगा।

परंतु लोग आवश्यकता होने पर रिटर्न दाखिल करने में असफल क्यों होते हैं? आमतौर पर यह अज्ञानता और लापरवाही है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि लोग पैसे बचाने के लिए किसी भी सीमा तक जाएंगे। जब तक सरकार का एक उच्च प्रवर्तन ना हो और वह अपराधियों को दंडित नहीं कर रही हो, बड़े पैमाने पर लोग पालन नहीं करेंगे। कुछ गलत कारण जिसकी वजह से रिटर्न दाखिल नहीं किए जाते हैंः
  • करदाता एक अप्रवासी बन गया हो व उसके पास भारतीय आय ना हो।
  • आय सीमा रेखा से नीचे होगी।
  • गलती से मान लेना कि सकल आय सीमा रेखा से ऊपर है परंतु कटौती के कारण कुल आय निर्धारित सीमा से कम हो जाती है।
  • जानबूझ कर दाखिल नहीं किया जाना या गलत मान लेना कि चूंकि स्त्रोत पर कटौती की गई है, आगे कोई कर देय नहीं है और रिटर्न दाखिल करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
  • कोई भी दाखिल नहीं कर रहा है तो यह ठीक है कि मैं भी ना करूं। 


किसे दाखिल करने की आवश्यकता है?
आयकर अधिनियम के अनुसार, भारत में आपको आयकर दाखिल करना अनिवार्य है यदि एक वित्तीय वर्ष में आपकी कुल सकल आय (धारा 80सी से 80यू के तहत किसी भी कटौती से पहले) 2,50,000 रूपये से अधिक है (60 वर्ष से अधिक आयू वाले लोगों के लिए 3 लाख व 80 वर्ष से अधिक की आयू वाले लोगों के लिए 5 लाख)। इन नियमों के अनुसार यह अनुमानित है कि भारत की लगभग 10 प्रतिशत जनसंख्या द्वारा आयकर का भुगतान किया जाना है-वर्तमान संख्या से लगभग 4 गुना अधिक।

रिटर्न दाखिल करने के लाभः
  • आयकर वापसी का दावा करने के लिए।
  • वीज़ा का आवेदन करने के लिए
  • भविष्य में किसी भी समय ऋण प्राप्त करने के लिए
  • एक हानि को आगे ले जाने के लिए
  • विदेशी संपत्ति वाले भारतीय नागरिक व वित्तीय हित या यदि आप एक कंपनी हैं। 

जिस प्रकार एक के बाद एक सरकारें नियम संशोधित कर रहीं हैं यह स्पष्ट है कि प्रत्यक्ष कर का भुगतान किए बगैर आप एक चिंता मुक्त जीवन व्यतीत करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं। सरकार उन लोगों को अधिक लाभ दे रही है जो नियमों का पालन करते हैं व जो नहीं करते उन पर सख्त दंड लगा रही है। आगे हम देखेंगे की अनुपालन किस प्रकार करें सूचना की अनदेखी करने के लिए दंड।

समनः पाप का प्रायश्चित करने का एक अवसर
दो वित्तीय वर्षों के बीत जाने के बाद, कोई विलंबित रिटर्न दाखिल नहीं कर सकता। जिन्हांेने दो वर्ष की बढ़ी हुई सीमा अवधि के दौरान भी रिटर्न दाखिल नहीं किया समन उन लोगों के लिए एक अवसर की तरह कार्य करता है क्योंकि आप समन की प्रतिक्रिया के रूप में रिटर्न दाखिल कर सकते हैं।

हालांकि, यदि आप पूर्व में समन के जवाब में एक लिखित उत्तर दाखिल करते आए हैं, तब आप मुसीबत में पड़ सकते हैं। जिन्हें समन प्राप्त हुआ है, समन में उत्तर की विधा का भी उल्लेख किया जाता है- चाहे वह एसएमएस द्वारा हो, ई-मेल अथवा भैतिक पत्र द्वारा। कही गई विधा का पालन करना ही पड़ता है।

प्रतिक्रिया देने की सरलता
समन का उत्तर देने की सुविधा में सुधार हुआ है और कर पेशेवर अब कहीं अधिक बेहतर अनुभव कर रहे हैं क्योंकि हर जगह इलेक्ट्रानिक चरण है। पूर्व में, रिटर्न की प्रतियां, समन, प्रासंगिक सबूत सलंग्न करना  होता था व रसीद के उद्देश्य के लिए प्रत्येक की तीन प्रतियां बनाई जानी होती थी। अब आपको केवल ई-फाइलिंग खाते में लॉग इन करने की आवश्यकता है, जहां उन्होनें सोच समझ कर कई सारे विकल्प दिए हैं और यदि आप विकल्पों से परे कुछ जोड़ना चाहतें हैं, तो अलग से एक टिप्पणी बाक्स है।

अब आपको केवल आपके ई-फाईलिंग खाते में लॉग इन करने, ‘‘कम्ंलायंस’’’ खंड में जाने व ‘‘व्यू एंड सबमिट कंप्लायंस’’ पर क्लिक करने की आवश्यकता है। करदाता को ‘‘फिलिंग आफ इनकम टैक्स रिटर्न’’ टैब सिलेक्ट करना है, जो उन निर्धारण वर्षों को सूचित करती है जिसके लिए रिटर्न दाखिल नहीं किया गया है व उसे उत्तर देना है कि क्या आईटीआर ‘‘दाखिल किया गया है’’ अथवा ‘‘नहीं किया गया है’’

यदि आपने दाखिल किया है, तो रसीद नंबर सहित विवरण प्रस्तुत किए जाने की आवश्यकता है। यदि आपने नहीं किया है, तो आपको उन्हें बताने की आवश्यकता है कि क्या रिटर्न तैयारी में है, व्यापार बंद हो चुका है, कर योग्य कोई आय नहीं है या अन्य कारण।

आपको ‘‘संबंधित सूचना सारांश’’ के रूप में विभिन्न लेन-देन का विवरण देने की भी आवश्यकता है, जो अनिवार्य रूप से बैंकों, टीडीएस रिटर्न, डाकघरों, जैसे तीसरे पक्ष से प्राप्त लेनदेन हैं, जिनके आधार पर समन भेजा गया है। आपको आयकर विभाग को सूचित करने की आवश्यकता है, कि क्या वे आपके स्वयं के लेनदेन हैं और यदि कर योग्य नहीं हैं तो क्या वे छूट प्रदान की गई आय, बचत, उपहार, आदि से संबंधित हैं।

इससे पहले की आप समन को नज़रंदाज़ करें, पहले उस वर्ष की सीमा रेखा देखें, जिसके संबंध में आपको समन प्राप्त हुआ है व सुनिश्चित कर लें कि आपने सीमा का उल्लंघन नहीं किया है। उदाहरण के लिए, वित्तीय वर्ष 2014-15 से 2.5 लाख की सीमा लागू है। हालांकि वित्त वर्ष 2013-14 के लिए यह सीमा 2 लाख रूपये रही है।

समन व कर देयता की उपेक्षा करना दंड का कारण बन सकता है। आयकर अधिनियम निर्धारण अधिकारी को अनुमति प्रदान करता है कि रिटर्न दाखिल नहीं करने के लिए या करों से बचने के लिए आपको आर्थिक तौर पर दंडित करे। यदि एक व्यक्ति खंड 271एफ के अनुसार उसका रिर्टन भरने में विफल रहता है तो उसपर 5,000 रूपये का जुर्माना लागू होता है, जबकि विलंबित रिटर्न के लिए प्रति माह 1 प्रतिशत दर पर ब्याज लागू होता है। दंडात्मक ब्याज की गणना उस दिन से की जाती है जबसे वह अपेक्षित था और उसका भुगतान नहीं किया गया है। इसलिए, यदि आप सितंबर 2014 की तिमाही से अग्रिम कर के भुगतान में चूक गए हैं, तो 1 प्रतिशत के ब्याज की गणना सितंबर से की जाती है। अधिकारी वसूली की कार्यवाही प्रारंभ कर सकता है, जिसमें बैंक खाते व मांग समन का संलग्न किया जाना शामिल होगा।

यदि निर्धारण अधिकारी कर की चोरी को भांप लेता है, तो उसके पास आपकी पिछले 4-6 वर्षों की भारतीय आय की जाँच करने की शक्ति है, जबकि विदेशी परिसंपत्तियों के लिए यह दायरा 16 वर्षों का है।

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