Tuesday 27 September 2016

भारत को अभी जीएसटी की आवश्यकता क्यों है

भारत मुख्य रूप से एक कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था है। भारत की अधिकांश जनसंख्या अधिकांश समय कृषि व भोजन उत्पादन गतिविधियों में कार्यरत है। केंद्र सरकार कृषि पर कर लागू नहीं कर सकती क्योंकि यह राज्य के दायरे में आता है। तो भारत को रक्षा/अवसंरचना/सब्सिडी या गरीबी निवारण कार्यक्रमों के लिए निधिकरण करना, भारत की अधिकांश जनसंख्या करों का भुगतान नहीं कर रही है। एकमात्र अपवाद सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क व सेवा कर जैसे अप्रत्यक्ष कर है। ये कर उस प्रत्येक व्यक्ति द्वारा चुकाए जा रहे हैं जो कर लागू किए गए इन उत्पादों को खरीदता है। तो यदि एक धनी कृषक एक लक्ज़री कार खरीदता है- हो सकता है उसने उसके जीवन में आयकर के रूप में एक रूपये का भी भुगतान ना किया हो तद्यपि वह उस खरीदी के लिए उत्पादन शुल्क एवं सीमा शुल्क में लाखों रूपये का भुगतान करेगा।


जब राष्ट्र विकसित होगा तब लोगों को कृषि से अधिक रोजगार निर्माण में प्राप्त होगा। हमने देखा है कि एक राष्ट्र कृषि से बड़े स्तर के निर्माण की ओर बढ़ता है क्योंकि निवेश क्षमता व व्यय क्षमता बढ़ जाती है। निर्माण के बाद का अगला कदम सेवाएं हैं, जो जनसंख्या के एक बड़े भाग को रोजगार प्रदान करती है। निर्माण दुर्भाग्य से चीन में स्थानांतरित हो गया है और भारत के पास विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी उद्योगों में से कुछ ही हैं। तो भारत को उसकी अर्थव्यवस्था का विकास करने के लिए कृषि से सीधे सेवा क्षेत्र में छलांग लगानी होगी।


यहीं पर वस्तु एवं सेवा कर को अपनाना भारत के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। एक राष्ट्र के तौर पर हम खाद्य से अधिक सेवाओं का उपभोग कर रहे हैं। हम खाद्य को उसके कच्चे रूप की बजाय शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, पर्यटन, भोजन की सेवाएं एवं कई अन्य सेवाओं में अधिक व्यय करते हैं। उदाहरण के लिए आप आपकी कार को सुधारने ले जाते हैं, वे भाग जो बदले गए हैं उनपर उत्पाद शुल्क लागू होता है, (सीमा शुल्क यदि उनका आयात किया गया है), राज्य बिक्री कर-वैट। प्रदान की गई श्रम सेवाओं के लिए आपको सेवा कर का भुगतान करना होता है। इससे मिलती जुलती स्थिति तब उत्पन्न होती है जब आप निर्माणाधीन संपत्ति खरीदते हैं जहां आपको वैट व सेवा कर का भुगतान करना होता है। ये दो पृथक कर हैं व दो पृथक सेवाओं पर चुकाए जाने हैं। हालांकि सबसे बुरी समस्या सॉफ्टवेयर खरीदना है, हमें एक ही उत्पाद पर वैट व सेवा शुल्क दोनों को भुगतान करना होता है।

भारत को उसके सकल घरेलू उत्पाद बढ़ाने के लिए ऐसी जटिलताओं का समाधान करना होगा। कैफे कॉफ़ी  डे में लगभग 100/- रूपये की कॉफ़ी खरीदने का आदर्श उदाहरण लेते हैं। पैसे का सबसे कम भाग उस किसान को जाएगा जो वास्तव में कॉफ़ी उगाता है। दूध का उत्पादन करने वाले डेयरी कृषक को उससे थोड़ा सा अधिक प्राप्त होगा, हालांकि सबसे अधिक हिस्सा सीसीडी को प्राप्त होगा। इससे पता चलता है कि लाभ की गुंजाइश के संदर्भ में सेवाओं की तुलना में कृषि व निर्माण ने पिछला स्थान ले लिया है। इसी तरह से सरकार को देश की बदलती अर्थव्यवस्था के समान कर संरचना तैयार करनी चाहिए।

जीएसटी के पारित होने के साथ हम विश्व को दिखा सकते हैं कि भारत एक प्रगतिशील व व्यापार अनुकूल राष्ट्र है। यह विभिन्न क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ाएगा जिन्हें पैसों की अत्यधिक आवश्यकता है। इसलिए जीएसटी कोई नया कर या नया कानून नहीं है यह राज्य एवं केंद्र के लगभग सभी अप्रत्यक्ष करों को केवल एक विधान में संयोजित कर रहा है। परंतु हम विश्व को एक स्पष्ट संकेत देंगे कि हम एक एकजुट राष्ट्र हैं व व्यापार के लिए तैयार हैं!

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