प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने विमुद्रीकरण
मुहीम 4 स्पष्ट उद्देश्यों के साथ शुरू की थी- नकली नोट, आतंकवाद, काला धन एवं भ्रष्टाचार।
भारत की 86 प्रतिशत मुद्रा को बदलने की पूरी क्रिया एक बड़ी सफलता थी या असफलता? आइए
हम कुछ प्रश्न पूछते हैं। नकली नोट वे हैं जो भारत में थे तथा कथित तौर पर पाकिस्तान
में मुद्रित किए जाते थे। चलन में नकली नोटों का महत्त्वपूर्ण भाग यह था कि उन्हें
पहचानना कठिन था। इसलिए नए नोट इस तरह से मुद्रित किए गए हैं कि वे पहचानने में आसान
हैं तथा मुद्रित करने में कठिन। अब तक ऐसी कोई घटना नहीं हुई है जिसमें नए नोट नकली
पाए गए हों। मुद्रा के नकली मुद्रण के कुछ छोटे प्रयास थे हालांकि वे छोटे स्तर पर
थे तथा आसानी से पकड़े गए थे। आने वाले वर्षो में हम देखेंगे कि क्या पाकिस्तान की प्रेसों
ने स्वयं को इस प्रकार से नोट छापने के लिए सक्षम कर लिया है जिसे पकड़ा ना जा सके।
आतंकवाद नकली नोटों द्वारा वित्तपोषित किया जाता
था और इसलिए यह अपेक्षित था कि आतंकवाद तत्काल कम हो जाना चाहिए। हालांकि, स्वभाव से
आतंकवादी अप्रत्याशित लोग हैं- अब तक हमलों का कोई उदाहरण नहीं रहा है इसलिए हम पता
नहीं लगा सकते कि आतंकवाद में वृद्धि हुई है या कमी आई है। उदाहरण के लिए, 9 जनवरी
2017 को एक हमला हुआ था जिसमें 3 लोग मारे गए थे तथा एक भारी हथियारों से लैस आतंकवादी
मारा गया था। विमुद्रीकरण के समर्थक कहेंगे कि 10 हमलों की योजना बनाई गई थी परंतु
नकली नोटों की कमी के कारण केवल एक ही किया गया था। जो लोग विरोध करते हैं वे कहेंगे
कि आतंकवाद रूका नहीं है। यदि यह कम भी हुआ है तब भी यह तर्क दिया जा सकता है कि आतंकवादी
किसी बड़ी घटना की योजना बना रहे हैं। तो कुछ वर्षों तक यह पता लगाना कठिन है कि क्या
विमुद्रीकरण ने आतंकवाद को वास्तव में प्रभावित किया है।
काला धन भारतीय अर्थव्यवस्था कि सबसे बड़ी समस्याओं
में से एक था। चूंकि सारे पैसों को बैंक में जमा किया जाना अपेक्षित था, यह माना जा
रहा था कि सारा पैसा जो कि काला था, उसे बैंक में घोषित किया जाना कठिन होगा। इस लेख
के लिखे जाने तक रिर्जव बैंक ने यह जानकारी घोषित नहीं की है कि कुल कितना पैसा बैंको
में जमा किया गया है। आयकर विभाग ने कई सारे छापे मारे हैं तथा नई मुद्रा में बहुत
सारा नकद प्राप्त किया है। तो प्रश्न यह उठता है- क्या काला धन कम हुआ है अथवा उतना
ही है? आयकर छापे यह साबित नहीं कर सकते हैं कि उन्होंने काले धन का 100 प्रतिशत प्राप्त
कर लिया है। आयकर विभाग दावा करता है कि खोजने एवं जब्ती के मामलों में वृद्धि हुई
है हालांकि क्या इसका अर्थ यह है कि काला धन कम हुआ है, यह एक बड़ा प्रश्न है। परंतु
एक संकेत रियल एस्टेट में मंदी है - जो एकमात्र बाज़ार था जहां बड़ी मात्रा में काले
धन का उपयोग होता था। कीमतों एवं सौदों की संख्या में कमी यह आशा प्रदान करती है कि
काले धन का चलन कम हुआ है।
भ्रष्टाचार ऐसा कुछ है जिसे मापना कठिन है। घूस
देने के लिए नकदी का स्थान सोने ने ले लिया है तथा छोटी रिश्वतों के लिए 2000 के नोटों
को ले जाना आसान है। ना हमारे पास पुरानी भ्रष्टाचार संख्या के रिकार्ड थे ना वर्तमान
भ्रष्ट अफसरों की संख्या के रिकार्ड हैं। कुल मिलाकर यह पता लगाने में हमें कुछ वर्षों
का समय लगेगा कि क्या विमुद्रीकरण एक स्मारकीय विफलता थी या एक मास्टर स्ट्रोक।
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